@शब्द दूत ब्यूरो (28 मार्च 2024)
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को तमाम विपक्षी दलों के साथ गठबंधन करने का सियासी फायदा क्या मिला. यह बात चुनावी नतीजे के बाद ही पता चलेगा, लेकिन उससे पहले कांग्रेस को एक के बाद एक बड़े झटके लग रहे हैं. यूपी से लेकर बिहार और महाराष्ट्र तक कांग्रेस के बड़े नेताओं के साथ घटक दलों ने बड़ा ‘खेला’ कर दिया है. इतना ही नहीं दूसरे दलों से कांग्रेस में आए दिग्गज नेताओं को मनचाही सीट भी नहीं मिल रही है, इसके चलते उनका भविष्य अधर में लटक गया है.
बिहार में महागठबंधन की सीट शेयरिंग में पूर्णिया लोकसभा को लेकर पेच फंसा है. पप्पू यादव ने पूर्णिया सीट से चुनाव लड़ने की शर्त पर ही अपनी जन अधिकार पार्टी का विलय कर दिया है. आरजेडी पूर्णिया सीट कांग्रेस को देने के लिए तैयार नहीं है. लालू प्रसाद यादव ने पूर्णिया सीट से बीमा भारती को चुनाव लड़ने की हरी झंडी दे दी है. पप्पू यादव पूर्णिया सीट से चुनाव लड़ने के लिए अड़े हुए हैं. कांग्रेस यह सीट आरजेडी से हासिल नहीं कर पाती है तो फिर पप्पू यादव का सियासी भविष्य पर संकट गहरा गया है. पप्पू यादव जैसा ही वाकया कई अन्य नेताओं के साथ भी हुआ है.
कन्हैया और पूर्वी वर्मा का क्या होगा?
जेएनयू के छात्र संघ अध्यक्ष रहे कन्हैया कुमार ने कांग्रेस का दामन थाम रखा है. कन्हैया 2019 में बिहार की बेगूसराय लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे. आरजेडी ने पिछले चुनाव में उनके खिलाफ कैंडिडेट उतारा था, लेकिन इस बार यह सीट लालू यादव ने लेफ्ट को दे दी है. कांग्रेस के हिस्से में यह सीट आती तो कन्हैया कुमार चुनावी मैदान में एक बार फिर से ताल ठोक सकते थे, लेकिन अब लेफ्ट के खाते में चली गई है.
उत्तर प्रदेश में सपा के दिग्गज नेता व पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रहे रवि वर्मा और उनकी बेटी पूर्वी वर्मा ने अखिलेश यादव का साथ छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया है. लखीमपुर खीरी लोकसभा सीट से रवि वर्मा कई बार सांसद रह चुके हैं. 2019 में पूर्वी वर्मा यहां से चुनाव लड़ी थी. कांग्रेस ने लखीमपुर खीरी सीट से पूर्वी वर्मा को चुनाव लड़ाने का आश्वासन दिया था, सीट शेयरिंग में यह सीट सपा ने ली है. कांग्रेस यह सीट मांगती रही, लेकिन सपा ने नहीं छोड़ी. अखिलेश यादव ने उत्कर्ष वर्मा को लखीमपुर खीरी सीट से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद रवि वर्मा और उनकी बेटी पूर्वी वर्मा के चुनाव लड़ने के अरमानों पर पानी फिर गया है.
नसीमुद्दीन सिद्दीकी भी साइलेंट मोड में
बसपा छोड़कर कांग्रेस में आए नसीमुद्दीन सिद्दीकी बिजनौर और मुरादाबाद में से किसी एक सीट लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए तैयारी कर रहे थे. कांग्रेस हाईकमान के सामने भी इस बात को रख दिया था, लेकिन सीट शेयरिंग में यह दोनों ही सीटें सपा ने अपने पास रखी हैं. कांग्रेस को सीट न मिलने से नसीमुद्दीन सिद्दीकी के चुनाव लड़ने पर ग्रहण है. ऐसे में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और उनके बेटे अब पूरी तरह से साइलेंट मोड में है.
सलमान खुर्शीद की सीट भी सपा के पास गई
कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद की परंपरागत सीट फार्रुखाबाद सपा के हिस्से में गई है. सपा ने सीट शेयरिंग से पहले ही फार्रुखाबाद सीट पर अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया था जबकि सीट बंटवारे के लिए कांग्रेस की बनी समिति में भी सलमान खुर्शीद शामिल थे. इसके बाद भी अखिलेश ने फर्रुखाबाद सीट कांग्रेस के लिए नहीं छोड़ी. ऐसे में सलमान खुर्शीद ने चुनाव लड़ने से अपने कदम पीछे खींच लिए हैं, लेकिन अपना दर्द सोशल मीडिया में बयां कर चुके हैं.
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव की शीट शेयरिंग को लेकर महाविकास अघाड़ी में घमासान है. इसके बावजूद उद्धव ठाकरे ने 17 सीट पर उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. उत्तरी मुंबई लोकसभा सीट से शिवसेना (यूबीटी) ने अमोल कीर्तिकर को प्रत्याशी बनाया है, जहां से कांग्रेस के दिग्गज नेता संजय निरुपम चुनाव की तैयारी कर रहे थे. उत्तरी मुंबई सीट पर उद्धव ठाकरे ने अपने उम्मीदवार उतारने के बाद संजय निरुपम ने बागी रुख अख्तियार रखा है. उन्होंने उद्धव के प्रत्याशी के प्रचार करने से भी मना कर दिया है.
मिलिंद ने छोड़ी पार्टी
मुंबई में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे मिलिंद देवड़ा इसीलिए पार्टी छोड़कर एकनाथ शिंदे की शिवसेना का दामन थाम लिया है. इसके पीछे वजह यह थी कि मिलिंद देवड़ा की परंपरागत मुंबई साउथ सीट उद्धव ठाकरे के पास चली गई है. उद्धव की शिवसेना (यूबीटी) मुंबई साउथ सीट किसी भी सूरत में छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी. ऐसे में मिलिंद देवड़ा के इस सीट से चुनाव नहीं लड़ने पर संकट गहरा रहा था, जिसके चलते उन्होंने पार्टी को अलविदा कह दिया.
बिहार में कांग्रेस के लिए आरजेडी तो यूपी में सपा सियासी अड़चन बन गई है. इसी तरह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की शिवसेना उसके सियासी राह में बड़ी बाधा बनी हुई है. कांग्रेस दूसरे दलों से आए नेताओं के जरिए सियासी बुलंदी हासिल करना चाहती थी, लेकिन वक्त और गठबंधन की सियासी मजबूरी उनकी राह में रोड़ा बन गई है. ऐसे में कांग्रेस कैसे अपना सियासी आधार बढ़ा पाएगी. माना जा रहा है कि यूपी और बिहार में कांग्रेस की सियासी जमीन पर ही सपा-आरजेडी खड़ी है. लालू यादव और अखिलश यादव इस बात को बाखूबी समझते हैं कि अगर कांग्रेस उभर गई तो फिर उनके लिए सियासी राह मुश्किल हो सकती है.