
@शब्द दूत ब्यूरो (09 दिसंबर 2023)
अतिथि सत्काराम मूलतः भारत के ग्रामीण / पहाड़ी इलाकों से बड़े शहरों को जोड़ने वाले छोटे शहर की की कहानी है। जहाँ आजकल सुख सुविधा की खोज में हर कोई बसना चाहता है ताकि वह पहाड़ी क्षेत्रों की ताजी हवा पानी के साथ साथ शहरी सुख सुविधाओं का आनंद उठा सके पिताजी के आशीर्वाद (रिटायरमेंट के फण्ड) और अपने कंपनी के लोन से एक सुंदर घर “अतिथि सत्कारम” में चन्दर और उसकी पत्नी अपनी छोटी सी बच्ची की साथ रह रहे है रजनी प्राइवेट बैंक में कैशियर है।
यहाँ पर सिवाय पहाड़ी हवा पानी के सब शहरी वातावरण के बीच सुबह से शाम तक की व्यस्त छटपटाहट में अतिथियों का आगमन कैसे परिवार पर अपना अच्छा और कुछ खट्टा मीठा अहसास करता है । चूँकि जगह ऐसी है कि यदि इंसान को बड़े शहरों से पहाड़ जाना है या फिर पहाड़ से बड़े शहरों को जाना है। उसकी तैयारी अतिथि ऐसे शहरों में रह रहे रिश्तेदार की मदद या अपन उल्लू सीधा करने में उसका उपयोग करते है । वह कैसे या किस हाल में गुजर बसर कर रह है उससे उनका कहीं से कहीं तक कोई नाता नहीं रहता।
कुछ अतिथि उनकी समस्याओं का अनुभव कर के परेशानियां दूर करने में मील का पत्थर साबित होते दिखाई पडते हैं । आस पास के मोहल्ले पर भी अतिथि अपने क्या छाप छोडते हैं वह भी चित्र इसमें देखने को मिलता है। कैसे यह परिवार अपने संस्कारों के अधीन, घर में लगातार आ रहे अतिथियों के अतिथि सत्कार में तल्लीन होकर अपना क्या खोता है और क्या पाता है ? यही इस कहानी में दिखाने की कोशिश की गई है। ऐसे क्षेत्रों में जमीन की खरीद फरोख्त पर भू कानून की आवश्यकता और महत्ता पर भी प्रकाश डाला गया है अन्ततः यहाँ पहाड़ नहीं है पहाड़ यहाँ से शुरु होते हैं पर्यटकों के लिए सन्देश भी दिया गया है।
कहानी में सभी पात्रों की अपनी खास भूमिका देखने को मिलेंगे, संयुक्त परिवार की जगह ले चुके, एकाकी परिवार की वजह से, कई रिश्तों के लुप्त हो जाने की भी चिंता भी अतिथि सत्कारम में दिखाई देगी।
यही नहीं इंसान कैसे भी हालत में रह कर, हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार, हमारी धरोहर “अतिथि देवो भवः” की परंपरा कैसे निभाता है इस कहानी के अलग अलग एपिसोड्स का मुख्य आकर्षण है।
निर्मात्री पूजा पिलख्वाल,लेखक व निर्देशक जगदीश तिवारी ,गीत संगीत देवकी शर्मा,गोविन्द दिगारी एवं फिल्म में देव सौंटियाल, अनिल घिल्डियाल-भुवन जोशी ने विशेष सहयोग दिया है।