
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव इस बार आम चुनावों जैसे ही रोचक और महत्वपूर्ण बन गए है। ये चुनाव भाजपा से ज्यादा प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की प्राण-प्रतिष्ठा के चुनाव है। पाँचों राज्यों में हालाँकि मतदान से ठीक तीन दिन पहले भाजपा का सूपड़ा साफ़ होने की संभावनाएं बताई जा रहीं हैं ,लेकिन चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में भाजपा ने जिस तरह से अपनी ताकत झौंक दी है उसे देखकर कांग्रेस नेतृत्व और कार्यकर्ताओं को किसी गलतफहमी का शिकार नहीं होना चाहिए ,क्योंकि बाजी पलटने में ज्यादा देर नहीं लगती।
पूरब में मिजोरम विधानसभा चुनाव से लगभग दूर रही भाजपा का सारा ध्यान राजस्थान,छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में कांग्रेस और केसीआर से सत्ता छीनने के साथ ही मध्यप्रदेश में अपनी सत्ता को छीने जाने से बचाने की कठिन चुनौती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन चारों राज्यों में भाजपा की कमजोर स्थिति का आकलन करते हुए चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत लगा दी है। पूरी केंद्र सरकार के अलावा दीपोत्स्व में विश्व कीर्तिमान बनाने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक को सड़कों पर उतार दिया है। वे खुद एक -एक दिन में एक-एक दर्जन सभाएं कर रहे हैं। प्रधानमंत्री राजस्थान में एक दिन में चार जनसभाएं और दो शहरों में रोड शो कर रहे हैं। विधानसभा चुनावों में रोड शो करने वाले मोदी जी पहले प्रधानमंत्री हैं।वे सुदूर झारखंड में बिरसा मुंडा की जयंती के बहाने भी मध्यप्रदेश और छग के आदिवासियों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं।
भाजपा के प्रादेशिक नेताओं में असंतोष और बगावत की वजह से इन सभी राज्यों में भाजपा को अपने चिर प्रतिद्वंदी कांग्रेस से लड़ने के साथ ही अपने आपसे भी लड़ना पड़ रहा है । दो मोर्चों पर एक साथ लड़ती हुई भाजपा के नेता अपना आत्मविश्वास खोने के लिए तैयार नहीं हैं। मिजोरम चूंकि छोटा राज्य था इसलिए भाजपा ने वहां अपनी शक्ति जाया नहीं की किन्तु छत्तीसगढ़ जीतने के लिए कोई कसर भी नहीं छोड़ी । आखरी में मुख्यमंत्री के सामने ‘ महादेव ऐप ‘ का भूत भी खड़ा कर दिया। राजस्थान में प्रवर्तन निदेशालय को हवा का रुख बदलने के लिए मुख्यमंत्री के बेटे तक को घेरने की कोशिश की लेकिन बात बनी नहीं।मुख्यमत्री अशोक गहलोत का जादू काटने के लिए मोदी जी का जादू ज्यादा चलता दिखाई नहीं दे रहा फिर भी मोदी जी और उनकी भाजपा ने रण छोड़ा नहीं है।
भाजपा को सबसे ज्यादा मेहनत मध्यप्रदेश में करना पड़ रही है । मध्य् प्रदेश में भाजपा के पास खरीदा हुआ जनादेश है । 2018 में चारों खाने चित हो चुकी भाजपा 2023 में किसी भी तरह अपने लिए एक विधिक जनादेश हासिल करना चाहती है । इसके लिए भाजपा हाई कमान ने दिल्ली से अपने 9 सांसदों और एक राष्ट्रीय महासचिव को चुनाव मैदान में उतारा है ,किन्तु इन 10 में से अनेक हाँफते हुए दिखाई दे रहे है। यहां तक की केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी अपनी जीत को लेकर बेफिक्र नहीं है। हालाँकि केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते और प्रह्लाद पटेल के सामने तोमर जैसी चुनौती नहीं है।
भाजपा हाई कमान को सबसे ज्यादा परेशान बागियों ने किया है। राजस्थान और मध्यप्रदेश के बाग़ी आखिर-आखिर तक आग बरसा रहे है। कोई हाथी पर सवार है तो कोई हाथ थामकर भाजपा को चुनौती दे रहा है। भाजपा के लिए राहत की बात सिर्फ इतनी है की आईएनडीआईए गठबंधन के सदस्य समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो सही समय पर कांग्रेस हाईकमान के प्रति बागी हो गए हैं । बसपा ने भी भाजपा की डगमगाती नाव को थोड़ा सा सहारा दिया है लेकिन सभी जगह नही। कहीं-कहीं बसपा भाजपा की प्रतिष्ठा के लिए खतरा भी है। आम आदमी पार्टी भाजपा के काम नहीं आ पायी क्योंकि भाजपा हाईकमान से उसकी अनबन हो गयी।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस हाईकमान और प्रदेश के जय-वीरू यानी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की जोड़ी की साझा कोशिशों से कांग्रेस की हवा बनी हुई है ,लेकिन कांग्रेस के गुब्बारे में भाजपा कब ‘ आलपिन ‘ चुभो दे कोई नहीं जानता। मध्यप्रदेश में जनादेश का अपमान करने के आरोपी ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा ने भूत बना दिया है । भाजपा हाईकमान सिंधिया से अभूतपूर्व श्रम करा रहा है। संध्या के सामने ग्वालियर चंबल के अलावा बुन्देलखंड और मालवा में चुनाव लड़ रहे अपने समर्थकों को जिताने के साथ ही भाजपा के अपने प्रत्याशियों को भी जिताने की जिम्मेदारी है। वे अकेले मेहनत कर रहे है। इस बार उनके साथ न उनका बेटा है और न पत्नी। वे अभी तक भाजपाई नहीं बन पाए हैं ,या वे अपनी ताकत लोकसभा चुनाव के लिए बचाकर रखे हुए हैं। मजे की बात ये है की पूर्व मुख्य्मंत्री उमा भारती सरे चुनावी परिदृश्य से नदारद हैं
पांच राज्यों के विधानसभा परिणामों को बदलना आसान काम नहीं है लेकिन इतना कठिन भी नहीं है जितना कांग्रेस मान बैठी है। कांग्रेस की मामूली सी गलती भी उसका बना -बनाया खेल खराब कर सकती है। अब जनता के हाथों में ही सब कुछ है। जनता चाहे तो ही कुछ नया हो सकता है अन्यथा नेता तो अपना काम कर चुके हैं।
@ राकेश अचल
achalrakesh1959@gmail.com