
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक
आपदाएं कहकर नहीं आती । लेकिन हकीकत ये है कि आपदाओं को आदमी खुद आमंत्रित करता है । पिछले दो महीने में हिमाचल और उत्तराखंड में जिस तेजी से पर्वतश्रंखलायें खिसकीं हैं उनसे पहाड़ों की गोद में रहने वाली आबादी दहल गयी है। जितने लोग मणिपुर में तीन महीने से ज्यादा हिंसा की आग में जले मणिपुर में नहीं मारे गए उससे दो गुना ज्यादा लोग हिमाचल और उत्तराखंड में अपनी जान गवां चुके हैं। खूबसूरत हिमाचल तो मिटटी के ढेर में तब्दील होता जा रहा है। पूरे राज्य को आपदाग्रस्त घोषित कर दिया गया है।
चुनावी बुखार में डूबे देश को न मणिपुर की फ़िक्र थी और न हिमाचल की फ़िक्र है । मणिपुर के बाद हिमाचल और उत्तराखंड भगवान के भरोसे है। हिमाचल में 10 हजार करोड़ रूपये से ज्यादा की सम्पत्ति का नुक्सान होने के साथ ही बीते दो महीने में 335 लोग अपनी जान गवां चुके हैं। सरकार प्राकृतिक आपदा के सामने असहाय है। विपदा की इस घड़ी में छत्तीसगढ़ ने हिमाचल को 11 करोड़ रूपये की तात्कालिक सहायता देने का ऐलान किया है । ये मानवीय संवेदना के साथ ही राजनीतिक सद्भावना भी है। हिमाचल में सिंगल इंजन की कांग्रेस सरकार है। इसलिए वहां केंद्र से अपेक्षित मदद अभी नहीं पहुंची है।
पहाड़ों में बरसात के दिनों में भूस्खलन एक आम बात है लेकिन जिस तरह से इस बार हिमाचल में पहाड़ खिसके हैं उसे देखकर खौफ पैदा हो गया है। हिमाचल प्रदेश में पिछले एक हफ्ते से भारी बारिश जारी है। हारकर राज्य सरकार को पूरा राज्य आपदाग्रस्त घोषित करना पड़ा।
हिमाचल में आपदा अपने आप नहीं आयी । इंसान ने इसे खुद न्यौता दिया है । विकास के नाम पर पूरे हिमाचल को खोद दिया गया है। पूरे हिमाचल में अवैज्ञानिक निर्माण के लिए पहाड़ों को सीधा काटा गया फलस्वरूप इसमें चट्टानों की नींव भी कट गईं।पानी रुक गय। अब ढलान खत्म होने से पानी बह नहीं रहा, सीधे पहाड़ों में बैठ रहा। पानी के बहाव वाले रास्तों पर पर अतिक्रमण- पानी के बहाव पर बस्तियां बस गईं, निकासी का रास्ता बंद हो गया। आपको शायद यकीन न हो लेकिन हकीकत ये है कि हिमाचल में 68 सुरंगें बन रही हैं। इनमें 11 बन चुकी हैं, 27 निर्माणाधीन हैं और 30 विस्तृत परियोजना की रिपोर्ट तैयार हो रही हैं। इनमें कई परियोजनाएं केंद्र की हैं। इससे राज्य में भूस्खलन के जोखिम वाले क्षेत्र लगातार बढ़ रहे है। उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि हिमाचल में भूस्खलन संभावित क्षेत्र बढ़कर 17,120 हो गए हैं। इनमें भी 675 के किनारे तो बाकायदा आबादी है हैं। शिमला में कई सरकारी भवन भूस्खलन के खतरे की जद में आ चुके हैं।
हिमाचल की आपदा केवल हिमाचल की आपदा नहीं है बल्कि इसकी वजह से सीमावर्ती पंजाब में भी तकलीफें बढ़ीं हैं। हिमाचल में हुई बारिश से पंजाब के 7 जिले बाढ़ की चपेट में है। इनमें होशियारपुर, रोपड़, तरनतारन, कपूरथला, अमृतसर, फिरोजपुर और गुरदासपुर बाढ़ की चपेट में हैं, जिनमें से गुरदासपुर की हालत सबसे अधिक नाजुक बनी हुई है। इन हालातों के बीच राहत की खबर सामने आई है। हिमाचल में हुई बारिश से पंजाब के 7 जिले बाढ़ की चपेट में है। इनमें होशियारपुर, रोपड़, तरनतारन, कपूरथला, अमृतसर, फिरोजपुर और गुरदासपुर बाढ़ की चपेट में हैं, जिनमें से गुरदासपुर की हालत सबसे अधिक नाजुक बनी हुई है।
हिमाचल की आपदा का अनुमान आप घर बैठे नहीं लगा सकते । इस बार की बरसात ने आधे से अधिक हिमाचल को शरणार्थी शिविरों में बदल दिया है।राज्य में पेयजल, विद्युत आपूर्ति व्यवस्था व सड़कों सहित अन्य संसाधनों को भी भारी क्षति पहुंची है। अभी तक राज्य में 12 हजार से अधिक घर क्षतिग्रस्त हुए हैं प्रदेश में कृषि और बागवानी को भी भारी नुकसान हुआ है। राज्य में संचार व्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। प्रदेश में जनजीवन अस्तव्यस्त हुआ है और व्यावसायिक गतिविधियां भी आपदा से अछूती नहीं रही हैं। प्रदेश के कई क्षेत्रों में लोगों को राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी है।
खतरे के दृष्टिगत बहुत से लोगों को उनके घरों से सुरक्षित निकालकर दूसरे स्थानों पर इस्तःपित करना पड़ा है।
दुर्भाग्य की बात ये है की मणिपुर की तरह यहां भी राजनीति हो रही है। जैसे मणिपुर कि मामले में केंद्र सरकार गुड़ खाकर बैठी थी वैसे ही हिमाचल की आपदा केंद्र को नजर नहीं आरही है। प्रदेश में इतनी बड़ी आपदा आई है लेकिन चारों सांसद आपदा में भी राजनीति कर रहे हैं। संसद के सत्र में प्रदेश के सांसदों ने सदन में सरकार से एक सवाल तक नहीं पूछा कि राज्य को राहत राशि कब और कितनी दी जा रही है। हिमाचल में ४ में से ३ संसद भाजपा कि हैं लेकिन राज्य में सरकार कांग्रेस की है। चारों सांसदों में से एक भी सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात तक करने नहीं गया । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा खुद मदद करने कि लिए आगे नहीं आए। राज्य कि मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू का आरोप है कि चारों सांसद सिर्फ सत्ता सुख भोग रहे हैं। जिन लोगों ने उन्हें चुना उनकी कोई परवाह नहीं है।
बारिश और भूस्खलन से जान-माल का नुकसान जारी है। उत्तराखंड में 15 जून से 28 अगस्त तक बारिश और भूस्खलन के चलते कम से कम 39 लोगों की जान गई है।सवाल ये है की क्या प्राकृतिक आपदाओं कि समय भी राजनीति की जाना चाहिए ? क्या प्रधानमंत्री और किसी दुसरे केंद्रीय मंत्री कि पास इतनी फुरसत नहीं है की वे आपदा ग्रस्त हिमाचल का दौरा कर पीड़ितों को ढांढस बंधा सकें। राजनीति का इतना हृदयहीन होना घातक है। देश को इस तरह की घटिया मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए। क्या ही बेहतर होता की हमारे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जी अपने तमाम चुनावी कार्यक्रमों को छोड़कर हिमाचल की पीड़ित जनता कि साथ खड़े होते ! गनीमत है की हिमाचल की सहायता कि लिए अनेक राज्य सरकारें आगे आयीं है। इनमें हरियाणा की भाजपा सरकार भी शामिल है। पहाड़ी राज्य को संकट से उभारने के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हिमाचल प्रदेश में पीड़ित लोगों की मदद के लिए 15 करोड़ रुपए की राशि देने की घोषणा की है. इससे पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 11 करोड़ और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर 5 करोड़ रुपए की सहायता राशि भेज चुके है।
आपको याद होगा की चुनाव कि समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिमाचल को अपना दूसरा घर बताते नहीं टहलते थे । लेकिन आज उनका दूसरा घर सबसे बडे़ संकट से गुजर रहा है।लेकिन अभी तक केंद्र ने राज्य की सहायता की घोषणा नहीं की है। कोई नहीं जानता कि केंद्र से वित्तीय सहायता कब मिलेगी ? अगर यह सहायता छह महीने के बाद आएगी तो इसका वह महत्व नहीं रह जाएगा। प्रदेश में भाजपा में नेतृत्व या वर्चस्व की लड़ाई हो सकती है। उनके लिए 2024 के लिए माहौल बनाने की बात हो सकती है, लेकिन सभी की प्राथमिकता पीड़ितों लोगों की मदद करने की होना चाहिए।
@ राकेश अचल
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