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विधेयक सेवा के लिए या मेवा के लिए ?कुछ सवाल वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की बेबाक कलम से

राकेश अचल,
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक

अंतत: ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन संशोधन विधेयक 2023’ संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया। इसे आप न सरकार की जीत कह सकते हैं और न विपक्ष की पराजय। इसे संख्या का खेल कह सकते है। कहें तो ठीक और न कहें तो भी ठीक। अब केंद्र सरकार के लिए दिल्ली की सेवा करने का रास्ता साफ़ हो गया है । अब केंद्र सरकार सेवा के बदले मिलने वाली मेवा को अकेले आम आदमी पार्टी को नहीं खाने देगी। केंद्र सरकार मिल-बांटकर खाने की आदी है। इस नए क़ानून के जरिये ऐसा ही होगा। ये सिलसिला आगे भी जारी रहेगा और कोई न अमित शाह का हाथ पकड़ पायेगा और न माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टोक पायेगा।

दरअसल भाजपा राजनीति में आयी ही जनसेवा के लिए है। पिछले 9 साल में भाजपा ने देश की जनता की इतनी सेवा की है कि पूरा देश गदगद है। जो गदगद नहीं हैं वे हो भी नहीं पाएंगे ,क्योंकि खुशी राम जी की कृपा से हासिल होती है। और राम जी इस समय सिर्फ और सिर्फ भाजपा पर मेहरबान हैं। राम जी भी क्या करें ,भाजपा ने उनके लिए 1992 में बाबरी मस्जिद को जमीदोज किया। ये एक बड़ा जोखिम था। जब मस्जिद गिराई गयी तब तो न अमित शाह थे और न मोदी जी । भाजपा की सत्ता भी नहीं थी केंद्र में। फिर भी कारसेवकों ने अपने अदम्य साहस से नामुमकिन को मुमकिन बनाकर दिखाया।

भाजपा के पास ‘ कार ‘ है और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पास ‘ सेवक ‘। दोनों मिलकर कारसेवा करते है। इस समय भी कर रहे हैं। इन कारसेवकों की खुलकर तारीफ़ की जाना चाहिए । हरिशंकर परसाई ने ये पुण्य कार्य नहीं किया था ,सो सजा भुगतना पड़ी।आज जिस तरह से देश में भाजपा की सरकार देश की जनता की कारसेवा कर रही है उसे दुनिया देख रही है। भाजपा को मणिपुर की कारसेवा से ज्यादा दिल्ली की कारसेवा की फ़िक्र थी। ये फ़िक्र माननीय गृहमंत्री जी के चेहरे पर साफ़ देखी जा सकती है । वे सेवा की फ़िक्र में दुबले नजर आने लगे हैं।उनका वजन बढ़कर भी कम दिखाई दे रहा है।

बहरहाल बात ‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन संशोधन विधेयक 2023’ विधेयक संसद में एक बेहद संजीदा बहस के बाद पारित हुआ । हमें और आम आदमी को ऐसी ही संसद अच्छी लगती है जो कम से कम बहस तो करती हो ? हंगामा करती संसद किसी को अच्छी नहीं लगती । हंगामा करती संसद देश के जनधन का दुरूपयोग करती दिखाई देती है । संसद में बहस हो तो कम से कम हमें अपने जनप्रतिनिधियों के बौद्धिक स्तर का पता तो चल जाता है। पता चल जाता है कि कौन कितने पानी में है ? पानीदार संसद वैसे भी अब कम बचे हैं ,और जो बचे हैं उन्हें बोलने का अवसर हंगामे के कारण नहीं मिलता।

केंद्र की भाजपा सरकार को समझ लेना चाहिए कि भले ही विपक्ष ने अपना ‘ इंडिया ‘ बना लिया हो किन्तु संसद पर अभी भी संघदक्ष स्वयंसेवकों का ही कब्जा है। संघ दक्ष कार्यकर्ता हर काम में दक्ष होता है। जलने से लेकर जलाने तक की विधाएँ उसे आतीं हैं। संघदक्ष कार्यकर्ता चाहे तो मणिपुर एक पल में शांत हो सकता है । संघदक्ष कार्यकर्ता चाहे तो सीमा से कोसों दूर हरियाणा एक ही पल में झुलस सकता है। संघदक्ष कार्यकर्ताओं की सरकार चाहे तो संसद में क़ानून बनाये बिना,कोई अध्यादेश लाये बिना भी अपनी ‘ बुलडोजर संहिता ‘ से न्याय कर सकती है। देश की कोई अदालत उसका कुछ नहीं कर सकती। जो कर सकती है वो संघदक्ष सरकार करती है।

आने वाले दिनों में हमारे देश की संसद में सरकार के मन की बात सुनी जाएगी। विपक्ष खूब मत विभाजन करता रहे। लेकिन विपक्ष को कम से कम संसद में अपने मन की बात करने का मौक़ा तो मिलना चाहिए। मुझे लगता है कि अब हमारी सबल सरकार दिल्ली के बाद शीघ्र ही देश शासन संशोधन विधेयक भी संसद में पेश करेगी । इस विधेयक के साथ 2023 चस्पा होगा या 2024 ये मै नहीं कह सकता।अगले आमचुनाव से पहले मौजूदा सरकार जो क़ानून बनाना है बना ले ,पता नहीं बाद में उसे मौक़ा मिले या न मिले। मिले तो बेहतर है। कम से कम भाजपा को और मोदी जी को देश की सेवा करने का मौक़ा तो मिले।

भाजपा की सबसे बड़ी खूबी ये है कि वो सियासत अपना पंचांग बनाकर करती है । किस तिथि,मिति को कौन सा काम होना है ये पहले से तय होता है। नियोजित राजनीति कभी असफल नहीं होती।विपक्ष अभी ये सब नहीं सीख पाया है। लेकिन आगे-पीछे उसे भी अपना पंचांग बनाकर काम करना होगा। इस पंचांग में यदि मणिपुर में आग बुझाने की कोई तिथि नहीं निकली है तो आग नहीं बुझाई जाएगी ,भले ही ये आग फैलकर बाकी के छह अन्य सीमावर्ती राज्यों में फैल जाए। भाजपा आग से डरती नहीं बल्कि आग से खेलती है । आग से खेलना कलेजे वालों का काम है। जो आग से खेलना जानता है उसे आग बुझाने का गुर भी आता है। कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल इस खेल के बारे में ज्यादा जानते नहीं है ,या जानना नहीं चाहते। भारत जोड़ने के लिए पद यात्राएं उतनी प्रभावी नहीं होतीं जितना कि आग का खेल।

सब जानते हैं कि आग का खेल जानलेवा होता है । आग से खेलते हुए कभी-कभी डीजल या पेट्रोल यदि फेंफड़ों में चला जाये तो जान भी जा सकती है । हमारे सूबे में भाजपा की एक सभा में आग का खेल दिखते हुए एक बन्दे की जान चली गयी। अब सरकार दिवंगत अग्निवीर के घर जाकर उसके परिजनों के पांव पखारे और उसे दस-पांच लाख रूपये दे दे तो किसी को न हैरानी होना चाहिए और न आपत्ति। जनसेवा करते हुए मीसा के तहत जेल जाना या आग से खेलना दोनों महत्वपूर्ण राष्ट्र सेवा की श्रेणी में आते हैं और इसके लिए बाकायदा पेंशन का प्रावधान है।

हम विषय से न हटें संसद के भीतर हंगामे के बजाय हो रही बहस का मजा लें। संसद में अब अविश्वास प्रस्ताव पार बहस होना है। उम्मीद की जाना चाहिए कि ये बहस और ज्यादा रोचक होगी । हंगामे से भी ज्यादा रोचक होगी और सबसे ज्यादा रोचक होगा अंत में प्रधानमंत्री जी का जबाब देना। देश ने प्रधानमंत्री जी को तरह-तरह के भाषण देते तो देखा है लेकिन कभी जबाब देते नहीं देखा । न संसद के भीतर और न संसद के बाहर। वे सवालों से भागते हैं और जबाबों से कतराते हैं। लेकिन अब उन्हें अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के बाद जबाब देने पर विवश किया जा रहा है। एक विवश प्रधानमंत्री का जबाब सचमुच ऐतिहासिक होगा। मुझे तो इस बहस पर माननीय के जबाब का बेताबी से इन्तजार है। दूसरे लोगों को भी शायद होगा।

लोकतंत्र कहता है कि किसी मुद्दे पार भले ही आम सहमति न हो किन्तु हर मुद्दे पार विचार-विमर्श,बहस तो होना ही चाहिये । क्या पता कब,कौन सा अमृत निकल आये ! दुर्भाग ये है कि हम और हमारी संसद लगातार बहस से अपना पिंड छुड़ाती दिखाई देती है। दोनों सदनों के सभापति लगता है कि घर से ही सदन स्थगित करने का फैसला करके आते हैं। हमने कभी उन्हें सदस्यों को मनाते ,समझाते नहीं देखा। उनकी आसंदी से सीधे सदन के स्थगन का आदेश झरता है। इस देश में भले ही राष्ट्रपति को रबर स्टाम्प कहा जाता हो किन्तु सदन के सभापतियों को कभी न स्टाम्प कहा गया और न कठपुतली,लेकिन दुर्भाग्य ये है कि सदन में सभापति संरक्षक की भूमिका में दिखाई ही नहीं देते।

सबसे दुर्भाग्य की बात ये है कि अब सदन में भी घोटाला करने से कोई नहीं हिचकता।’दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन संशोधन विधेयक 2023’ को सिलेक्ट कमेटी के पास भेजे जाने से जुड़े आम आदमी पार्टी के सदस्य राघव चड्ढा के प्रस्ताव पर विवाद हो गया। सत्ता पक्ष के 5 सदस्यों ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि उनकी सहमति के बिना प्रस्ताव में उनके नाम डाले गए और इस मामले को विशेषाधिकार समिति के पास भेजा जाए। उपसभापति हरिवंश ने इस मामले में जांच की बात कही है। ये सचमुच मजाक है। सदन की गरिमा बनाये रखने की जिम्मेदारी सभी दलों की है। सत्ता पक्ष की ज्यादा भले ही हो किन्तु विपक्ष की भी कम नहीं है।
चलिए हम सब अब देश की संसद में मौजूदा सरकार के खिलाफ आने वाले अविश्वास प्रस्ताव पर होने वाली बहस को देखें,सुनें और मन बनायें कि आने वाले दिनों में हमें किस तरह के लोगों को चुनना है। ये बहस एक रास्ता दिखाएगी । अविश्वाश प्रस्ताव को तो गिरना ही है किन्तु गिरने के भय से कोई घुड़सवारी करना तो नहीं छोड़ता ? पराजय के भय से जंग कभी नहीं थमती। जंग जारी रहना चाहिए।
@ राकेश अचल
achalrakesh1959@gmail.com

 

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