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लोकतंत्र ,अमरीका और भारत@राकेश अचल

राकेश अचल,
वरिष्ठ पत्रकार जाने माने आलोचक

आज भारत में जहां एक तरफ अदालतों के फैसलों से एक और खुशी है तो दूसरी और गम का माहौल है। कोई कांग्रेस के राहुल गांधी की मानहानि के मामले में सजा पर रोक लगाए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश है तो कोई उत्तर प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा ज्ञानवापी मामले में सर्वे की अनुमति देने के फैसले से दुखी है। हमारी अदालतें सभी को खुश कर भी नहीं सकती । कभी उनके फैसले लोकतंत्र के पक्ष में दिखाई देते हैं तो कभी उनके फैसले अलोकतांत्रिक लगते हैं ,लेकिन ये फैसले क़ानून के दायरे में ही होते हैं। हमारी संसदों में इन फैसलों को लेकर अजब गजब प्रतिक्रियाएं भी होती हैं। हमारी संसद बजाय मुद्दों पर बहस करने के हंगामे में डूबी रहना पसंद करती है । इसके बरअक्स अमेरिका की संसद में धार्मिक उदारता का मुजाहिरा करने वाले ऐसे प्रस्ताव पेश किये जा रहे हैं कि जिन्हें देखकर आप दांतों तले उंगली दबा लें।

आपको जानकार हैरानी होगी कि अमेरिकी संसद कांग्रेस ने इस्लाम को एक ‘प्रमुख धर्म’ के रूप में मान्यता दिए जाने को लेकर प्रस्ताव रखा है। प्रस्ताव टेक्सास के सांसद अल ग्रीन ने पेश किय। अमेरिकी संसद में पेश किए गए प्रस्ताव में जिसमें कहा गया है कि इस्लाम शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने वाला धर्म है। प्रस्ताव में कहा गया कि इसे एक प्रमुख धर्म के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए । अमेरिकी संसद में रखे गए प्रस्ताव को इल्हान उमर, रशीदा तलीब और आंद्रे कार्सन जैसे सांसदों ने अपना समर्थन दिया। इस्लाम को एक ‘प्रमुख धर्म’ के रूप में मान्यता दिए जाने की मांग करने का ये प्रस्ताव उस समय आया है जब स्वीडन और डेनमार्क जैसे यूरोपीय देशों में इस्लाम की किताब कुरान को जलाने की घटनाएं सामने आ रही हैं। प्रस्ताव में कहा गया है कि सांसदों की तरफ से यह प्रस्ताव कुरान पर हमले जैसे कृत्यों को रोकने के उद्देश्य से लाया गया है।

बीती 28 जुलाई को जब हमारे देश की संसद मणिपुर के मुद्दे पर हंगामे में डूबी थी उसी समय अमेरिका की संसद में इस प्रस्ताव को पेश किया गया। इसका मकसद अमेरिका के लोगों के भीतर इस्लाम धर्म के लिए बेहतर समझ और सम्मान विकसित करना बताया गया। सदन ने प्रस्ताव को विदेश मामलों की सदन समिति को भेजा था। प्रस्ताव में इस्लाम के बुनियादी सिद्धांतों और मुस्लिमों की प्रथाओं, परंपराओं का जिक्र है। प्रस्ताव में कहा गया कि इस्लाम शब्द का अर्थ ‘ईश्वर की इच्छा के प्रति समर्पण और ‘शांति’ है। कहा गया है कि मुसलमान मानते हैं कि इस किताब के जरिए अल्लाह ने उन्हें जीवन जीने का तरीका बताया है।
आपको बता दूँ कि अमेरिकी संसद में पेश प्रस्ताव में कहा गया कि इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ने वाला धर्म है। दुनिया भर में लगभग दो अरब मुसलमान हैं जबकि अमेरिका में भी 35 लाख मुसलमान रहते है। इस प्रस्ताव को लाने वाले टेक्सास के सांसद अल ग्रीन पाकिस्तान कॉकस के सदस्य है।आप उन्हें भारत के सांसद असादुदीन औबेसी की तरह देख सकते हैं क्योंकि वे इस्लामिक देशों पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों पर भी मुखालफत करते रहे हैं। उन्होंने मुस्लिम देशों से प्रवासियों के आने पर प्रतिबंध लगाने के ट्रम्प के आदेश और इस्लाम को एक ‘कट्टरपंथी धर्म’ के रूप में दिखाए जाने के 2015 के कदम का विरोध किया था । कायदे से अमेरिका को अब तक सांसद अल-ग्रीन को देशद्रोही घोषित कर देना चाहिए था,लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

अमेरिका के मुसलमान भारत के मुसलमानों की तरह अमेरिका में पैदा नहीं हुए है। अमेरिका के किसी धार्मिक नेता ने कभी नहीं कहा कि मुसलमान आबादी बढ़ने से अमेरिका में ईसाइयत खतरे में है। लेकिन भारत में मौजूदा सत्ता और सत्तारूढ़ पार्टी के साथ ही तमाम महामण्डलेशरों,शंकराचार्यों और कथित धार्मिक सरकारों को मुसलमानों की वजह से हिंदुत्व खतरे में दिखाई देता है। वे मुसलमानों को काबू में रखने के लिए यूसीसी लाने के लिए कमर कैसे बैठे है। उनका बस चले तो वे देश भर की मस्जिदों को खोदकर वहां मंदिर बना लें ,क्योंकि अतीत के शासकों ने मंदिरों को तोड़कर वहां मस्जिदें बनाई हैं।

हमारे देश की राजनीति इस समय हिन्दू-मुसलमान में विभाजित राजनीति है । हम मुसलमानों को आज भी भारतीय नागरिक मानने को राजी नहीं है। जबकि ये वे मुसलमान हैं जिनके पुरखों ने देश की आजादी के समय हुए विभाजन में भारत छोड़ने से इंकार कर दिया था,क्योंकि वे भारत को अपनी मातृभूमि मानते थे। उनका फैसला इस्लाम और कुरआन से ऊपर मातृभूमि के लिए था । आज उन्हीं मुसलमानों की संतानों को पाकिस्तान जाने के लिए कहा जा रहा है। भारत की तरह अमेरिका भी कथित इस्लामिक आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार है लेकिन अमेरिका में आज भी इस्लाम मानने वालों को आतंकी नहीं समझा जाता । वे आम अमरीकियों की तरह वहां रह रहे हैं। उनसे देश छोड़ने के लिए नहीं कहा जाता। हमारे देश में अमेरिका के संसद ग्रीन की तरह प्रस्ताव लाने का कोई साहस ही नहीं कार सकता। करे तो उसे फौरन देशद्रोही घोषित किया जा सकता है।
चूंकि दुनिया में हम अपने आपको लोकतंत्र की जननी कहते हैं इसलिए हमें अपने क्रियाकलापों के बारे में फिर से सोचने की जरूरत है । मै न अंग्रेजों का समार्थक हूँ और न अमरीकियों का, लेकिन मुझे आज के अमरीकी अतीत के अंग्रेजों से ज्यादा सुलझे लगते है। ज्यादा उदार लगते हैं। अमेरिका में भी छोटे दिल और दिमाग के राजनेता हुए हैं,आज भी हैं लेकिन आम अमरीकियों ने ऐसे नेताओं को कभी दूसरी बार नहीं चुना लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाते। हम बार-बार गलती करते है। गलती पर गलती करते हैं और उसे सुधारने के बारे में सोचते तक नहीं हैं। हम जन पक्षधरता और लोकतंत्र के अर्थ भूलते जा रहे है। हमें आज भी मंदिर और मस्जिद के विवाद और नकली राष्ट्रवाद आकर्षित करता है। हमारे पास ये स्वर्णिम अवसर है जब हम अपने आपको परमार्जित कर दुनिया को बता सकते हैं कि सचमुच सनातन का अर्थ वसुधैव कुटुंबकम ही है। हम हिन्दू,मुसलमान,सिख,ईसाई सबको आत्मसात कर सकते हैं, सबको सम्मान दे सकते है। हमारे यहां किसी को भयभीत होने की जरूरत नहीं है।
@ राकेश अचल
achalrakesh1959@gmail.com

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