@नवल सारस्वत
बरसात अगर समय पर और जरूरत अनुसार हो तो एक सुखद अनुभूति का एहसास करवाती है । लेकिन बेवक्त और आपदा का रूप ले ले तो नुकसानदायक और जानलेवा भी साबित होती है। खेती और किसानों के लिए यही बरसात कभी वरदान तो कभी अभिशाप साबित होती है ।
अब बात करते हैं शासन प्रशासन की बरसात से पहले दौरान की जाने वाली तैयारियों की। गौरतलब यह है की किसी भी राज्य में होने वाली बरसात से होने वाले नुकसान और दुर्घटनाओं से सभी वाकिफ होते हैं ।लेकिन अक्सर देखा गया उस वक्त एक दूसरे पर दोषारोपण करके अपनी नाकामियों को छुपाने का प्रयास पूर्व में भी किया जाता रहा है और वही सिलसिला आज भी जारी है ।
सवाल यह उठता है कि जो नुकसान आज होते हैं वह पूर्व में भी होते रहे हैं। इसके बावजूद उनसे सीख ना लेते हुए थोड़ा बहुत मुआवजा देकर और अपनी नाकामियों का ठीकरा दूसरे के ऊपर डालकर जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया जाता है। बरसात होने के बाद जलभराव को देखकर जो कार्य बाद में किए जाते हैं। क्या वह पहले से नहीं हो सकते? अक्सर स्वच्छता पर बड़े-बड़े दावे करने वाले सवालों से बचते और जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ते हुए देखे जाते हैं ।
काश यही सक्रियता अगर पहले से ही दिखाई जाए तो किसी भी शहर को सुंदर और स्वच्छ बनाने का सपना और दावा महज एक दिखावा ना होकर हकीकत में बदलते ज्यादा समय नहीं लगेगा । बाकी बरसातें आती रहेंगी जाती रहेंगी लेकिन जो समस्याएं आज भी मुंह फैलाए खड़ी हैं ।उनको कैसे सुधारा जा सकता है । यह सवाल कल भी था आज भी है और आगे भी?जो अनुत्तरित ही रहेगा शायद।