@शब्द दूत ब्यूरो (27 जून 2023)
भोपाल। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भोपाल में कल अपने अलग अंदाज में नजर आये। मौका था बूथ कार्यकर्ता सम्मेलन में संबोधन का और पीएम मोदी ने इस दौरान समान नागरिक संहिता , मुस्लिम समुदाय खासकर मुस्लिम महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर विपक्षी दलों पर जमकर निशाना साधा। हालांकि इस संबोधन में पीएम मोदी मुसलमानों के पिछड़ेपन से चिंतित दिखाई देते नजर आये।
उन्होंने यहां 10 लाख बूथ कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। पीएम मोदी ने विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए बीजेपी को जीत का मंत्र बताया। इस बीच पीएम मोदी ने पसमांदा मुसलमानों को न्याय न मिलने की बात कही। आपको बता दें कि भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए पसमांदा मुसलमानों का जिक्र पीएम मोदी ने पहली बार नहीं किया है। इससे पहले भी वे भाजपा की कई बैठकों और कार्यक्रम में पसमांदा मुसलमानों का जिक्र कर उन्हें भाजपा से जोडऩे की बात कर चुके हैं। वहीं सबसे पहले उन्होंने पसमांदा मुसलमानों को पार्टी से जोडऩे पर जोर तब दिया था जब वे गुजरात के सीएम थे। इसका उन्हें फायदा भी मिला था।
दरअसल मुस्लिमों का एक ऐसा वर्ग है़ जो पिछड़ा या कमजोर माना जाता है। यही वर्ग पसमांदा मुस्लिम कहलाता है। देश में मुसलमानों की कुल आबादी के 85 फीसदी को पसमांदा कहा जाता है। यानी वो मुस्लिम जो दबे हुए हैं, इनमें दलित और बैकवर्ड मुस्लिम आते हैं। हिंदुओं की तरह भारतीय मुस्लिमों में भी जातीय व्यवस्था है। मुस्लिमों के उच्च वर्ग या सवर्ण को अशरफ कहते हैं, लेकिन इसके अलावा ओबीसी और दलित मुस्लिम हैं, उन्हें पसमांदा कहा जाता है। पसमांदा मूल तौर पर फारसी का शब्द है, जिसका मतलब होता है, वो लोग जो सामाजिक, आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। जबकि 15 प्रतिशत में सैयद, शेख, पठान जैसे उच्च जाति के मुसलमान हैं। अगड़े मुसलमान सामाजिक और आर्थिक तौर पर ये मजबूत हैं और सभी सियासी दलों में इन्हीं का वर्चस्व रहा है जबकि, पसमांदा समाज सियासी तौर पर हाशिए पर ही रहा है। पीएम मोदी इन्हीं मुसलमानों को पार्टी से जोडऩे के लिए बार-बार जोर दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि पूरे मुसलमानों के बजाय इन्हें जोडऩा आसान है। पसमांदा मुस्लिमों को सरकार की जनकल्याणा योजनाओं का लाभ देकर आसानी से पार्टी के करीब लाया जा सकता है।
मुसलमानों के ओबीसी तबके को पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है। इनमें कुंजड़े (राईन), जुलाहे (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई चिकवा, कस्साब (कुरैशी), फकीर (अलवी), नाई (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी, गद्दी, लोहार-बढ़ई (सैफी), मनिहार (सिद्दीकी), दर्जी (इदरीसी), वन-गुज्जर, गुर्जर, बंजारा, मेवाती, गद्दी, मलिक गाढ़े, जाट, अलवी, जैसी जातियां आती हैं। इस तरह से पसमांदा मुस्लिम तमाम जातियों में बंटा हुआ है। पीएम मोदी इन्हीं पसमांदा मुस्लिमों को बीजेपी से जोडऩे पर बार-बार जोर दे रहे हैं।
वहीं पसमांदा मुस्लिम संगठन के प्रमुख इसका विरोध करने की ही बात करते हैं। इनका मानना है कि बीजेपी मुसलमानों को बांटना चाहती है। एक तरफ तो बीजेपी हिन्दु समुदाय की तमाम जातियों को एक करना चाहती है, तो वहीं मुसलमानों को जातियों के नाम पर अलग करना चाहती है। आपको बता दें कि बीजेपी मुस्लिमों को जोडऩे के अपने प्रयासों को लगातार तेज कर रही है, लेकनि अब तक उसे कोई सफलता नहीं मिली है। मुस्लिम समुदाय का वोट बैंक मोटे तौर पर बीजेपी से दूर ही रहा है। इसके बावजूद बीजेपी उन्हें पार्टी से जोडऩे के लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोडऩा चाहती।