हिंदुत्व से तमिलत्व की ओर जाते हिंदुस्तान को आज नया संसद भवन ही नहीं बल्कि एक नया दंडी स्वामी भी मिल गया है।अब भारत हजारो साल पुराना दंडकारण्य बनेगा और यहां सरकार संविधान से कम राजदंड से ज्यादा चलेगी। राजदंड को सेंगोल कहते हैं।अब न देश में चोल वंश है न उनके वंशज, फिर भी सेंगोल को देने और लेने का प्रहसन करने वाले हैं।
सेंगोल धारण करने के लिए अधीर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन के उद्घाटन से एक दिन पहले अपने आवास पर अधीनम (पुजारी) से मिले.। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस सहित अन्य विपक्ष दलों पर जमकर हमला करते हुए कहा कि इन्होंने तमिल लोगों के काम को महत्व नहीं दिया है ।
कर्नाटक में औंधे मुंह गिरी भाजपा को देख प्रधानमंत्री जी को अचानक तमिलनाडु और तमिलत्व की याद आ गई।वे सेंगोल धारण करते हुए भी अपना कांग्रेसी दर्द नही छिपा सके।मोदी ने कांग्रेस का नाम लिए बिना कहा, ”हमारे स्वतंत्रता संग्राम में तमिलनाडु की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. भारत की आजादी में तमिल लोगों के योगदान को वो महत्व नहीं दिया गया जो दिया जाना चाहिए था.। अब बीजेपी ने इस विषय को प्रमुखता से उठाना शुरू किया है.’।’
उन्होंने कहा कि तमिल परंपरा में शासन चलाने वाले को सेंगोल दिया जाता था, सेंगोल इस बात का प्रतीक था कि उसे धारण करने वाले व्यक्ति पर देश के कल्याण की जिम्मेदारी है और वो कभी कर्तव्य के मार्ग से विचलित नहीं होगा । वे भूल गए कि तमिलनाडु अकेला कभी भारत नहीं था और न चोल पूरे देश क शासक। फिर भी तमिलनाडु से दिल्ली आए अधीनम ने प्रधानमंत्री मोदी को मंत्रोच्चारण के बीच उन्हें सेंगोल सौंपा ।
सवाल ये है कि जब सेंगोल संग्रहालय में था तो अधीनम के पास कहां से आया। सवाल ये भी है कि अधीनम को किसने सेंगोल लाने और प्रधानमंत्री जी को समर्पित करने के लिए कहा। क्योंकि अभी प्रधानमंत्री जी को न तो नया जनादेश मिला है और न अंग्रेजों ने उन्हें सत्ता सौंपी है ? उन्हें सत्ता कांग्रेस से मिली थी।वो भी 9 साल पहले। प्रधानमंत्री को यदि सेंगोल से ही शासन करना था तो इसे 9 साल पहले क्यों नहीं मंगाया गया?
सेंगोल धारण किए प्रधानमंत्री जी सचमुच खूबसूरत लग रहे थे। पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी ज्यादा खूबसूरत। पंडित जी को अंग्रेजों ने सेंगोल सौंपा था। म्लेच्छ हाथों से मिले सेंगोल को पंडित जी ने संग्रहालय में रख दिया, क्योंकि वे जानते थे कि देश राजदंड से नहीं संविधान से चलेगा।
प्रधानमंत्री जी नेहरू पर आरोप लगा रहे थे कि उन्होंने राजदंड उर्फ सेंगोल को ‘ वाकिंग स्टिक ‘ बना दिया था। लेकिन मुझे नेहरू की एक भी तस्वीर ऐसी नहीं मिली जिसमें वे सेंगोल उर्फ वाकिंग स्टिक के सहारे चलते दिखाई दे रहे हों।
दरअसल संविधान के सहारे सरकार चलाने में नाकाम लोगों को अचानक राजदंड की जरूरत महसूस हुई।9 साल से वे लंगड़ा कर सरकार चला रहे थे,अब राजदंड की बैसाखी के जरिए सरकार चलाई जाएगी। हिंदुत्व का नारा नाकाम हुआ तो तमिलत्व का सहारा ले लिया गया जबकि यही तमिलत्व भाषा की दृष्टि से भारत को एक मानने की सबसे बड़ी बाधा है।
मै तमिलत्व का भरपूर सम्मान करता हूं क्योंकि तमिलों ने तमाम प्रतिकूलता के बावजूद अपनी भाषा और संस्कृति को सहेज कर रखा।आज भी अपवादों को छोड़ तमिल दुनिया में कहीं भी रहें, घर में तमिल बोलते हैं और गैर तमिलों से रोटी -बेटी का रिश्ता नहीं रखते।इस लिहाज से तमिल हिंदुओं के मुकाबले ज्यादा सनातन है।बेहतर होता कि तमिल भाजपाई राजनीति के जाल में फंसकर चोलवंश का राजदंड किसी और को न सौंपता। लेकिन अधीनम की इतनी हैसियत कहां जो वे दिल्ली की ख्वाहिश पूरी करने से इंकार कर सकते।
अब सरकार जनादेश से नहीं , राजदंड उर्फ सेंगोल देने वाले मठाधीशों के आशीर्वाद से चलेगी।प्रधानमंत्री मोदी को तमिलनाडू के, 18 मठों के मठाधीशों ने अपने आशीर्वाद के साथ प्रधानमंत्री को राजदंड दिया. राजदंड का अर्थ है कि आप किसी के साथ अन्याय नहीं कर सकते हैं । यानि अब प्रधानमंत्री जी चौकीदार नहीं बल्कि दंडी स्वामी बन गए हैं। उनसे डरने की जरूरत नहीं है।
दुर्भाग्य की बात है कि माननीय प्रधानमंत्री जी जब नये संसद भवन का लोकार्पण कर रहे हैं तब सिंधु और टिकरी सीमा को सील करना पड़ गया। क्योंकि देश के किसान दिल्ली आना चाहते थे। लेकिन सेंगोलधारी सरकार किसानों से डर गई। किसान पहले भी सरकार की नाक में दम कर चुके हैं।
तमिलनाडु का सेंगोल धारण करने के पीछे भाजपा की मजबूरी को समझना चाहिए। तमिलनाडु में भाजपा लाख कोशिश करके भी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकी।तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके प्रमुख एम. के. स्टालिन ने डीएमके कार्यकर्ताओं से कड़ी मेहनत करने और 2024 के आम चुनावों में तमिलनाडु और पुडुचेरी की सभी 40 सीटें जीतने की अपील की है। स्टालिन हाल ही में कर्नाटक में नयी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में भी मौजूद थे।
तमिलनाडु विधानसभा में भाजपा की कुल 4 सीटें हैं, लोकसभा में तमिलनाडु ने भाजपा का खाता ही नहीं खुलने दिया।अब आने वाले लोकसभा चुनावों में सेंगोल का जादू कितना चलेगा, ये कहना कठिन है। उतना ही कठिन जितना संविधान के बजाय राजदंड से सरकार चलाना।
@ राकेश अचल
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