@शब्द दूत ब्यूरो (27 मई 2023)
देश में मंहगाई का खूब रोना पीटना किया जाता है।पर हम मंहगाई को लेकर दोहरे मानदंड अपनाते हैं। एक छोटी सी कार्टून फिल्म के जरिए मंहगाई का रोना रोने वालों पर जोरदार कटाक्ष किया गया है।
हमारे जीवन में जो वस्तुएं जरूरी है उनके मंहगे होने पर शोर मचाते हैं। लेकिन वहीं हमें भोग विलास की वस्तुओं के लिए हर कीमत चुकाने में कोई दर्द कोई पीड़ा नहीं होती। इस फिल्म में दो लोगों के वार्तालाप के जरिए एक संदेश देने का प्रयास किया गया है। शराब का उदाहरण देना कुछ लोगों की नजर में असंगत लग सकता है। ये कह सकते हैं कि आम आदमी के जीवन में शराब एक गैरजरूरी वस्तु है लेकिन अगर आप आंकड़े देखेंगे तो पता चलेगा कि यह कहने भर के लिए ग़ैर ज़रूरी है। शराब की दुकानों पर भीड़ देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये कितनी गैरजरूरी वस्तु है। अब चाहे आम आदमी हो या कोई धनाढ्य शराब जरूरी उपभोक्ता वस्तुओं में शामिल होती जा रही है। विभिन्न पारिवारिक आयोजनों में अलग से काकटेल पार्टी रखकर इसे जरुरी उपभोक्ता वस्तुओं में शामिल करने की होड़ मची हुई है।
इस फिल्म में वार्तालाप के दौरान दो मित्र मंहगाई का जिक्र करते करते अचानक आत्म मंथन करने लगते हैं और सस्ता क्या है मंहगा क्या है? इस बात का खुलासा भी खुद ही करते हैं। आत्ममंथन तो जरूरी है। एक सार्थक संदेश इस फिल्म में देने का प्रयास किया गया है। आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।