@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो (25 मई, 2023)
समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक आजम खां के नफरती भाषण मामले में बरी होने के बाद उनकी खत्म की गई सदस्यता का मामला बड़े सवाल के रूप में सामने आ गया है। यह सवाल संवैधानिक व न्यायिक दोनों ही नजरिए से महत्वपूर्ण है।
सवाल ये है कि आजम की सदस्यता निरस्त करने से रिक्त घोषित सीट पर जब नया विधायक निर्वाचित होकर शपथ ले चुका है, तो आजम की रद हुई सदस्यता बहाल कैसे हो? आगे अन्य मामलों में ऐसी स्थिति आए, तब क्या होगा? विधि विशेषज्ञों व कानून के जानकारों का कहना है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को नए सिरे से स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने चाहिए।
दरअसल, समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक आजम खां को नफरती भाषण देने के मामले रामपुर की एमपी-एमएलए सेशन कोर्ट ने बरी कर दिया है। इसी मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट ने 27 अक्तूबर 2022 को आजम खां को तीन वर्ष की सजा सुनाई थी। इसके बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द हो गई थी। सदस्यता रद्द होने के बाद रामपुर सीट पर उप चुनाव हुआ, जिसमें भाजपा के आकाश सक्सेना विधायक निर्वाचित हो गए। आकाश शपथ भी ले चुके हैं।
अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि जिस मामले में दोषी होने पर सदस्यता रद हो सकती है, उसमें बरी होने पर बहाल कैसे हो? विधि विशेषज्ञों का मानना है कि देश में इस तरह का यह पहला मामला है। इस मामले को संज्ञान में लेते हुए सर्वोच्च न्यायालय को अब स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने चाहिए। उनका मानना है कि एमपी-एमएलए कोर्ट से सजा होने के बाद अपील तक सदस्यता रद्द न होने का प्रावधान लागू होना चाहिए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंगनाथ पांडेय का कहना है कि आजम खां को एमपी-एमएलए कोर्ट से सजा होने के बाद उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय ने सजा पर स्थगन आदेश नहीं दिया था। नतीजन नियमानुसार रामपुर में उप चुनाव कराकर नए विधायक का निर्वाचन हुआ। उनका कहना है कि चूंकि अब वहां चुनाव हो चुका है इसलिए आजम खां की सदस्यता बहाल नहीं हो सकती है। लेकिन अब सेशन कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया है तो साफ है कि वह दोषी नहीं थे। ऐसे मामलों में अब सर्वोच्च न्यायालय को स्पष्ट दिशा निर्देश जारी करने चाहिए कि यदि संबंधित विधायक या सांसद अपील में बरी हो जाते हैं तो उनकी सदस्यता का क्या होगा।