@शब्द दूत ब्यूरो (24 मई 2023)
देश में यह अपने आप में पहली राजनीतिक उथल-पुथल थी। जो शायद आखिरी भी होगी। उस समय चार सौ से अधिक सत्ता के अपने सांसद थे। आप समझ सकते हैं कि तब वास्तव में विपक्ष कितना कमजोर रहा होगा।पर विपक्षी सांसदों के सामूहिक इस्तीफे से पूरी दुनिया में हलचल मच गई थी। हालांकि अब ऐसा होना संभव नहीं है। दरअसल मौजूदा सत्तारूढ़ दल भाजपा ने विपक्षी एकता की सभी संभावनाओं को अपनी कुशल रणनीति से तार तार कर रखा है।
आपको बताते हैं कि आज से 30 साल पहले एक तोप ने लोकसभा में पूरे विपक्ष को एकजुट कर दिया था। वह भी तब, जब विपक्ष का कोई नेता नहीं था। जबकि आज तो विपक्ष का नेता भी हैं। उस समय अघोषित रूप से विपक्ष का नेता सत्ता पक्ष का एक मंत्री बन गया था। उसी के बाद विपक्ष के 110 सांसदों में से 106 सासंदों ने इस्तीफा दे दिया था। भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसे मौके में बेहद कम होंगे जब विपक्ष ने ऐसी मजबूत एकता दिखाई हो।
वह दिन भारतीय राजनीति और खास तौर पर कांग्रेस के लिए भूचाल लाने वाला साबित हुआ। मामला 1437 करोड़ रुपए के बोफोर्स घोटाले का था। जिसमें स्वीडन की कंपनी एबी बोफोर्स और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार के साथ 155 मिमी के 400 हॉविट्जर तोपों का सौदा हुआ था।
मजे की बात यह है कि तब यानि 1986 में हुए बोफोर्स डील में दलाली और भ्रष्टाचार का खुलासा 1987 में एक विदेशी स्वीडिश रेडियो ने किया। आरोप था कि कंपनी ने सौदे के लिए भारत के नेताओं और रक्षा विभाग के अधिकारी को 60 करोड़ रुपए घूस दिए हैं। इसके बाद देश के मीडिया में भी यह खबर तेजी से फैली। आरोप लगने के बाद कैग ने इसकी जांच की थी। कैग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि हथियारों को मानकों का उलंघन करके खरीदा गया था। इसके साथ कैग ने यह भी बताया कि हथियारों की डिलीवरी में जानबूझकर देरी की गई।
उस दौरान 514 सीटों वाली लोकसभा में विपक्ष के केवल 110 सांसद थे, इनमें विशेष रूप से बीजेपी के (मात्र) 2, जनता पार्टी के 10, वामपंथी 22, तेलगू देशम 30, एआईएडीएमके के 12 प्रमुख थे। 106 विपक्षी सांसदों ने इस्तीफा दिया था। यहां विपक्ष की मजबूती के साथ ही सत्ता की कमजोरी भी निकल कर सामने आई। क्योंकि विपक्ष की एकता के हीरो वीपी सिंह थे, जो सत्ता से निकल कर सामने आए थे। तब भाजपा के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि हम तोप को लेकर हुए भ्रष्टाचार का भरपूर विरोध करेंगे।
क्या आज विपक्षी एकता का वह दौर आ सकता है? कभी नहीं क्योंकि बिखरे हुए विपक्ष को एक कर पाना नामुमकिन है। सभी विपक्षी दलों के नेताओं के अपने अपने स्वार्थ हैं। स्वार्थ की राजनीति ने विपक्षी एकता को छिन्न-भिन्न कर दिया है।