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खुलासा: सांसद व विधायक प्रतिनिधि की नियुक्ति का नहीं है संविधान में कोई प्रावधान,सभी नियुक्तियां अवैध ,आर टी आई से मिली जानकारी

@शब्द दूत ब्यूरो (27 अप्रैल 2023)

काशीपुर। कहने-सुनने में अजीब लगता है। जो खुद किसी का प्रतिनिधि है, वह अपने जिम्मे सौंपे गए कार्यों के निष्पादन के लिए एक और प्रतिनिधि नियुक्त कर देता है। यही नहीं शासन और प्रशासन भी इन्हें मान्यता देता है और ये हर स्तर पर हस्तक्षेप करते मिलते हैं। हालांकि यह सम्पूर्ण व्यवहार कानूनी दृष्टि से जहां अवैध है, वहीं नैतिक दृष्टिकोण से भी उचित नहीं कहा जा सकता।

सांसद-विधायक प्रतिनिधियों की नियुक्ति का सिलसिला बहुत पुराना है। इसी से प्रेरणा ग्रहण कर कालांतर में छाया सांसद, छाया विधायक यानी पराजित प्रत्याशी पैदा हुए। फिर पंच-सरपंच पति, पार्षद पतियों की परंपरा शुरू हुई। अब इन्हीं नकली जन प्रतिनिधियों का सब तरफ दबदबा नजर आता है। ये अनेक प्रशासनिक बैठकों में बाकायदा हिस्सा लेते हैं। शासकीय कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं। कई अवसरों पर अराजकता फैलने का कारण भी बनते हैं। इसके बावजूद समूचा प्रशासन इनके आगे नत- मस्तक रहता है।

जबकि सच्चाई यह है कि किसी भी जन प्रतिनिधि को चाहे वह सांसद हो या विधायक, अपनी जगह किसी अन्य को प्रतिनिधि नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं है। इस बात की पुष्टि सूचना का अधिकार के तहत मिली जानकारी से हुई है।आर टी आई एक्टिविस्ट अजय कुमार श्रीवास्तव ने सांसद- विधायक प्रतिनिधियों की नियुक्ति के सम्बन्ध में छत्तीसगढ़ शासन के विधि- विधायी विभाग से जानकारी मांगी थी। विभाग ने सूचना का अधिकार के तहत प्रदत्त जानकारी में साफ लिखा है कि विधायक प्रतिनिधियों की नियुक्ति को लेकर कभी कोई आदेश जारी नहीं किया गया है। इस लिहाज से अलग अलग विभागों के लिए की जाने वाली स्थायी प्रतिनिधियों की नियुक्तियां अवैध एवं असंवैधानिक है। इसी तरह केंद्र सरकार का भी सांसद प्रतिनिधि नियुक्ति को लेकर कोई आदेश नहीं है।

सांसद-विधायक प्रतिनिधि नियुक्ति का यह अवैध और अनैतिक मामला बेहद गंभीर प्रतीत होता है। इसे यूं समझा जाना चाहिए कि एक किसान अपने कार्यों के निष्पादन के लिए मजदूर नियुक्त करता है। फिर वह मजदूर अपनी जगह एक अन्य मजदूर नियुक्त कर उसे कार्य पर लगा देता है। इस व्यवस्था में एक अच्छी बात यह है कि संसद और विधान सभा में खुद सांसद- विधायक उपस्थित होते हैं। इसके पीछे विधिक बाध्यता है। कोई भी सांसद- विधायक चाहकर भी सदन में अपना प्रतिनिधि नहीं भेज सकता। वरना सच तो यह है कि आम जनता के वेतनभोगी प्रतिनिधि अपनी जगह, अपने प्रतिनिधि को भेज देते।

वहीं उत्तराखंड के काशीपुर निवासी कानून विशेषज्ञ और सूचना अधिकार के जाने-माने कार्यकर्ता नदीमुद्दीन एडवोकेट भी इस नियुक्ति को सही नहीं मानते।उनका कहना है कि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था है ही नहीं।

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