वैशाख शुक्ल तृतीया की महिमा मत्स्य,स्कंद,भविष्य,नारद पुराणों व महाभारत आदि ग्रंथों में है।इस दिन किये गये पुण्यकर्म अक्षय (जिसका क्षय न हो) व अनंत फलदायी होते हैं अत: इसे “अक्षय तृतीया” कहते हैं। यह सर्व सौभाग्यप्रद है।
यह युगादि तिथि यानी सतयुग व त्रेतायुग की प्रारम्भ तिथि है।श्रीविष्णु का नर-नारायण,हयग्रीव और परशुरामजी के रूप में अवतरण व महाभारत युद्ध का अंत इसी तिथि को हुआ था।
इस वर्ष अक्षय तृतीया 23 अप्रैल रविवार को पड़ रही है|
इस दिन बिना कोई शुभ मुहूर्त देखे कोई भी शुभ कार्य प्रारम्भ या संम्पन्न किया जा सकता है जैसे – विवाह,गृह प्रवेश या वस्त्र-आभूषण,घर,वाहन,भूखंड आदि की खरीददारी,कृषिकार्य का प्रारम्भ आदि सुख-समृद्धि प्रदायक है।
*प्रात:स्नान,दान,पूजन,हवन का महत्त्व।*
इस दिन गंगा स्नान करने से सारे तीर्थ करने का फल मिलता है।यदि तीर्थ में जाने का अवसर नहीं मिले तो गंगाजी का सुमिरन एवं जल में आवाहन करके स्नान करना चाहिए ब्रम्ह मुहूर्त में पुण्यस्नान तो सभी कर सकते है।स्नान के पश्चात् प्रार्थना करें–
माधवे मेषगे भानौं मुरारे मधुसुदन|
प्रात: स्नानेन में नाथ फलद: पापहा भव॥
अर्थात् – हे मुरारे ! हे मधुसुदन ! वैशाख मास में मेष के सूर्य में हे नाथ ! इस प्रात: स्नान से मुझे फल देनेवाले हो जाओ और पापों का नाश करों।
सप्तधान्य उबटन व गोझरण मिश्रित जल से स्नान पुण्यदायी है।पुष्प, धूप-दीप,चंदन अक्षत आदि से लक्ष्मी-नारायण का पूजन व हवन अक्षय फलदायी है।
*जप,उपवास व दान का महत्त्व*
इस दिन किया गया उपवास,जप,ध्यान,स्वाध्याय भी अक्षय फलदायी होता है।एक बार फलाहार करके भी उपवास कर सकते हैं।
“भविष्य पुराण” में आता है कि इस दिन दिया गया दान अक्षय हो जाता है।
इस दिन पानी के घड़े,पंखे,ओले (खांड के लड्डू),पादत्राण (जूते-चप्पल),छाता,जौ,गेहूँ,चावल,गौ,वस्त्र आदि का दान पुण्यदायी है।परंतु दान सुपात्र को ही देना चाहिए।अक्षय तृतीया के दिन जो ऐसा करता है उन्हें अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है ।
*पितृ-तर्पण का महत्त्व व विधि*
इस दिन पितृ-तर्पण करना अक्षय फलदायी है।पितरों के तृप्त होने पर घर में सुख-शांति,समृद्धि व दिव्य संताने आती हैं।
विधि – इस दिन तिल एवं अक्षत में श्रीविष्णु एवं ब्रम्हाजी को तत्त्वरूप से पधारने की प्रार्थना करें।फिर पूर्वजों का मानसिक आवाहन कर उनके चरणों में तिल,अक्षत व जल अर्पित करने की भावना करते हुए धीरे से सामग्री किसी पात्र में छोड़ दें तथा भगवान दत्तात्रेय,ब्रम्हाजी व विष्णुजी से पूर्वजों की सदगति हेतु प्रार्थना करें।
*आशीर्वाद पाने का दिन*
इस दिन माता-पिता,गुरुजनों की सेवा कर उनकी विशेष प्रसन्नता,संतुष्टि व आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए इसका फल भी अक्षय होता है।
*अक्षय तृतीया का तात्त्विक संदेश*
“अक्षय” यानी जिसका कभी नाश न हो।शरीर एवं संसार की समस्त वस्तुएँ नाशवान है,अविनाशी तो केवल परमात्मा ही है।यह दिन हमें आत्म विवेचन की प्रेरणा देता है।अक्षय आत्मतत्त्व पर दृष्टी रखने का दृष्टिकोण देता है।महापुरुषों व धर्म के प्रति हमारी श्रद्धा और परमात्म प्राप्ति का हमारा संकल्प अटूट व अक्षय हो यही अक्षय तृतीया का संदेश मान सकते हैं |
*अक्षय तृतीया*
“अक्षय” शब्द का मतलब है जिसका क्षय या नाश न हो।इस दिन किया हुआ जप,तप,ज्ञान तथा दान अक्षय फल देने वाला होता है अतः इसे “अक्षय तृतीया” कहते हैं।भविष्यपुराण,मत्स्यपुराण,पद्मपुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण,स्कन्दपुराण में इस तिथि का विशेष उल्लेख है।इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं उनका बड़ा ही श्रेष्ठ फल मिलता है। इस दिन सभी देवताओं व पित्तरों का पूजन किया जाता है।पित्तरों का श्राद्ध कर धर्मघट दान किए जाने का उल्लेख शास्त्रों में है।वैशाख मास भगवान विष्णु को अतिप्रिय है अतः विशेषतः विष्णु जी की पूजा करना चाहिए।
स्कन्दपुराण के अनुसार जो मनुष्य अक्षय तृतीया को सूर्योदय काल में प्रातः स्नान करते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करके कथा सुनते हैं वे मोक्ष के भागी होते हैं।जो उस दिन मधुसूदन की प्रसन्नता के लिए दान करते हैं उनका वह पुण्यकर्म भगवान की आज्ञा से अक्षय फल देता है।
भविष्यपुराण के मध्यमपर्व में कहा गया है वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया में गंगाजी में स्नान करनेवाला सब पापों से मुक्त हो जाता हैं।वैशाख मास की तृतीया स्वाती नक्षत्र और माघ की तृतीया रोहिणी युक्त हो तथा आश्विन तृतीया वृष राशि से युक्त हो तो उसमें जो भी दान दिया जाता है वह अक्षय होता है।विशेषरूप से इनमें हविष्यान्न एवं मोदक देनेसे अधिक लाभ होता है तथा गुड़ और कर्पुर से युक्त जलदान करने वाले की विद्वान् पुरुष अधिक प्रंशसा करते हैं वह मनुष्य ब्रह्मलोक में पूजित होता हैं।यदि बुधवार और श्रवण से युक्त तृतीया हो तो उसमें स्नान और उपवास करनेसे अनंत फल प्राप्त होता हैं।
मदनरत्न में कहा गया है—
अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं।
तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया।
उद्दिश्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यै:।
तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव।।
अर्थात्-भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठरसे कहते हैं हे राजन इस तिथि पर किए गए दान व हवन का क्षय नहीं होता है इसलिए हमारे ऋषि-मुनियोंने इसे “अक्षय तृतीया” कहा है।इस तिथि पर भगवानकी कृपादृष्टि पाने एवं पितरोंकी गतिके लिए की गई विधियां अक्षय-अविनाशी होती हैं।
भविष्यपुराण ब्रह्मपर्व अध्याय-२१ में कहा गया —
वैशाखे मासि राजेन्द्र तृतीया चन्दनस्य च।
वारिणा तुष्यते वेधा मोदकैर्भीम एव हि।
दानात्तु चन्दनस्येह कञ्जजो नात्र संशयः।
यात्वेषा कुरुशार्दूल वैशाखे मासि वै तिथिः।
तृतीया साऽक्षया लोके गीर्वाणैरभिनन्दिता।
आगतेयं महाबाहो भूरि चन्द्रं वसुव्रता।कलधौतं तथान्नं च घृतं चापि विशेषतः।
यद्यद्दत्तं त्वक्षयं स्यात्तेनेयमक्षया स्मृता।
यत्किञ्चिद्दीयते दानं स्वल्पं वा यदि वा बहु।
तत्सर्वमक्षयं स्याद्वै तेनेयमक्षया स्मृता।
योऽस्यां ददाति करकन्वारिबीजसमन्वितान्।
स याति पुरुषो वीर लोकं वै हेममालिनः।
इत्येषा कथिता वीर तृतीया तिथिरुत्तमा।
यामुपोष्य नरो राजन्नृद्धिं वृद्धिं श्रियं भजेत्।।
अर्थात् – वैशाख मास की तृतीया को चन्दनमिश्रित जल तथा मोदक के दान से ब्रह्मा तथा सभी देवता प्रसन्न होते हैं।देवताओं ने वैशाख मास की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा है।इस दिन अन्न,वस्त्र,भोजन,सुवर्ण और जल आदि का दान करनेसे अक्षय फल की प्राप्ति होती है।इसी तृतीया के दिन जो कुछ भी दान किया जाता है वह अक्षय हो जाता है और दान देनेवाला सूर्यलोक को प्राप्त करता है।इस तिथि को जो उपवास करता है वह ऋद्धि-वृद्धि और श्री से सम्पन्न हो जाता है।
आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक”
(ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र एवं वैदिक अनुष्ठानों के विशेषज्ञ)
खखैचा प्रयागराज उत्तर प्रदेश