@शब्द दूत ब्यूरो (08 नवंबर 2022)
देश में धार्मिक विश्वास से जुड़े सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण के दौरान अधिकांश मंदिरों के कपाट बंद कर दिये जाते हैं। लेकिन देश में उज्जैन के महाकाल मंदिर समेत कुछ मंदिर ग्रहण के दौरान भी खुले रहते हैं।
महाकाल मंदिर के अलावा गोवर्धन जी का मंदिर झाबुआ, दक्षिण भारत के कैलाष्ठी में काल हटेश्वर मंदिर, नाथद्वारा राजस्थान के नाथद्वारा में श्रीनाथ मंदिर, तथा द्वारिकाधीश मंदिर मथुरा के कपाट ग्रहण काल में भी बंद नहीं होते। ग्रहण काल में इन मंदिरों के कपाट क्यों नहीं बंद होते? आईये आपको बताते हैं इसका कारण।
पहले बात करते हैं मध्य प्रदेश के उज्जैन के महाकाल मंदिर की। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर के पट ग्रहण काल भी बंद नहीं किये जाते हैं। लेकिन शिवलिंग को छूना और भोग नहीं लगाया जा सकता है। कहा जाता है और ये मान्यता है कि यहाँ ऐसी मान्यता है कि कालों के काल महाकाल पर ग्रहण का कोई असर नहीं होता है इसीलिए इसके कपाट खुले रखे जाते हैं और भक्त दर्शन कर सकते हैं। अलबत्ता इस दौरान गर्भ गृह में श्रद्धालुओं का प्रवेश नहीं होता है जबकि पंडित और पुरोहित मंदिर के गर्भ गृह में भी प्रवेश कर सकते हैं। यानी थोड़ा बहुत परिवर्तन होता है।
गोवर्धन नाथ जी की हवेली झाबुआ में भगवान श्री कृष्णा के बाल रूप के दर्शन होते हैं। भगवान बाल रूप में होने की वजह से उन्हें अकेले नहीं छोड़ा जा सकता है। लेकिन बाल रूप में भगवान कृष्ण को काले कपड़े पहना दिये जाते हैं। ग्रहण के दौरान भक्त श्री गोवर्धन नाथ जी की हवेली में आकर भजन और कीर्तन कर सकते है।
दक्षिण भारत के कैलाष्ठी में स्थित कालहटेश्वर मंदिर राहु और केतु को समर्पित है । यही वजह है कि इसके कपाट खुले रहते हैं। । दरअसल दुनिया में ये एकमात्र राहु और केतु को समर्पित मंदिर है। इस मंदिर में राहु केतु के साथ ही काल सर्प दोष पूजा ही होती है।
वहीं राजस्थान का श्रीनाथद्वारा मंदिर भी भगवान श्रीकृष्ण के ही स्वरूप श्री नाथ जी को समर्पित है ग्रहण के दौरान इस मंदिर के पट कभी भी बंद नहीं किये जाते हैं। इस दौरान बड़ी संख्या में भक्त यहाँ आकर मंदिर की परिक्रमा और पूजा पाठ करते हैं।
मथुरा में द्वारिकाधीश मंदिर के कपाट भी खुले रहेंगे यहाँ भक्त भजन कीर्तन भी कर सकते हैं। ये मंदिर पुष्टि मार्ग संप्रदाय को समर्पित है।