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बाक़ी कुछ बचा तो मंहगाई मार गयी@सरकारों की फिजूलखर्ची और जनता की मितव्ययता पर वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल की बेबाक कलम से

राकेश अचल, लेखक देश के जाने-माने पत्रकार और चिंतक हैं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित होते हैं।

सियासत की बात करने से गालियां खाना पड़तीं हैं लेकिन मंहगाई की बात करने से कौन सा पदम् पुरस्कार मिल जाता है ? बात तो करना ही पड़ती है. आप महाकाल लोक की बात मत कीजिये क्योंकि इससे धार्मिक भावनाएं आहत होती हैं. आप वन्दे मातरम रेल की खामियों की बात मत कीजिये,क्योंकि इससे सरकार की बदनामी होती है .आप मंहगाई की बात भी मत कीजिये,क्योंकि ये कोई नयी बात नहीं है. जब से जन्मी है तब से अमरबेल की तरह फूलती-फलती आ रही है .

देश में मंहगाई कांग्रेस के जमाने से बढ़ना शुरू हुई तो आज तक रुकी नहीं .मंहगाई की मार खाने की आदत बन चुकी है जनता की.बेचारी न आह भर सकती है और न कराह सकती है,क्योंकि ये दोनों काम राष्ट्रविरोधी हैं. जनता से कहा जाता है कि-‘ क्या वो देश के लिए मंहगाई का बोझ भी नहीं उठा सकती ?’ महंगाई को अंग्रेजी वाले इन्फ्लेशन कहते हैं .मंहगाई के सितंबर के आंकड़े आ गए हैं। लगातार नौवें महीने खुदरा महंगाई संतोषजनक स्तर से ऊपर रही है।ये संतोषजनक स्तर जनता का नहीं बल्कि सरकार का अपना होता है . सितंबर में यह पांच महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। मजे की बात ये है कि इस मंहगाई दरें के बढ़ने के लिए केंद्र सरकार को नहीं बल्कि भारतीय रिजर्व बैंक को जिम्मेदार माना जाता है .खबर है कि अब भारतीय रिजर्व बैंक को अब केंद्र सरकार को रिपोर्ट देकर इसका विस्तार से कारण बताना होगा।

सरकार अपने ऊपर कोई जिम्मेदारी नहीं लेती.सरकार किस पार्टी की है ,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता.सभी सरकारों का चरित्र मंहगाई के मामले में कमोवेश एक जैसा ही होता है.भाजपा ने सत्ता में आने के बाद 2016 में रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत ये व्यवस्था कर दी है कि अगर महंगाई के लिए तय लक्ष्य को लगातार तीन तिमाहियों तक हासिल नहीं किया गया है, तो रिजर्व बैंक को केंद्र सरकार को रिपोर्ट देकर उसका कारण और महंगाई को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में विस्तार से जानकारी देनी होगी। यह बताना होगा कि महंगाई को निर्धारित दायरे में क्यों नहीं रखा जा सका और उसे काबू में लाने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।

मंहगाई बढ़ती सरकार के कदमों से है लेकिन जिम्मेदार बताया जाता है बेचारी रिजर्व बैंक को . केंद्र सरकार की तरफ से रिजर्व बैंक को मिली जिम्मेदारी के तहत रिजर्व बैंक को खुदरा महंगाई दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत पर बनाए रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है। अब मौद्रिक नीति समिति के सचिव को भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत इस बारे में चर्चा के लिए एमपीसी की अलग से बैठक बुलानी होगी और रिपोर्ट तैयार कर उसे केंद्र सरकार को भेजना होगा।
मजे की बात ये है कि रिजर्व बैंक महंगाई को काबू में लाने के लिये मई से ही नीतिगत दर में वृद्धि कर रहा है। उसने अबतक नीतिगत दर 1.9 प्रतिशत बढ़ायी है जिससे रेपो दर 5.9 प्रतिशत पर पहुंच गयी है।लेकिन मंहगाई है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही . महामारी के शुरूआती महीनों में तीन तिमाही से अधिक समय तक मुद्रास्फीति लक्ष्य के दायरे से बाहर रही थी। लेकिन ‘लॉकडाउन’ के कारण आंकड़ा संग्रह में तकनीकी कमियों के कारण उस समय ीिजर्व बैंक को रिपोर्ट नहीं देनी पड़ी थी।

मंहगाई का मुद्दा उठाते ही सरकार में बैठे लोग कहते हैं कि मंहगाई फालतू का मुद्दा है,आप जरा बाजार में देखिये कैसी रौनक है ? धड़ाधड़ कारें बिक रहीं हैं,जेवर बिक रहे हैं,इलेक्ट्रॉनिक्स का सामान बिक रहा है .कहाँ है मंहगाई ? मंहगाई होती तो जनता सड़कों पर न उतर आती श्रीलंका की तरह ? इस तर्क में वजन तो है ,क्योंकि जनता तो अब मंहगाई प्रूफ हो गयी है .जनता ने सड़कों पर आना छोड़ दिया है.मंहगाई का गाना छोड़ दिया है ,क्योंकि जानती है कि सरकार ऊंचा सुनती है .सड़क की आवाजें उसे सुनाई ही कहां देती हैं ? बेचारी जनता हार मान चुकी है .लड़ना भूल चुकी है .इसलिए सरकार भी स्वतंत्र है मंहगाई बढ़ाने के लिए .अब ये लिखना भी बेमानी लगता है कि-‘ मंहगाई सुरसा के मुंह जैसी बढ़ रही है .’मंहगाई का बढ़ना तो सुरसा के मुख के बढ़ने से भी कई गुना तेज है. हनुमान रूपी रिजर्व बैंक आखिर कब तक मंहगाई का मुकाबला करे ?

मंहगाई से निबटने के लिए जनता को कोल्हू में डालकर पहले ही निचोड़ा जा चुका है. जनता दही,मही तक पर तो टैक्स दे रही है .सरकारों की फिजूलखर्ची बंद नहीं हो रही. सरकार देश की सनातन सभ्यता को पुनर्जीवित करने के लिए काशी,अयोध्या और उज्जैन के मंदिरों को चकाचक करने में खुले हाथ से खर्च करने को ही राष्ट्रगौरव मान बैठी है ,ऐसे में असहाय जनता कहाँ जाये ? ‘ परम् स्वतांत्रत न सर पर कोई ‘ की स्थिति है .जनता तो इतनी बेचारी है कि सरकार को श्राप भी नहीं दे सकती .उलटे जनता खुद अभिशप्त है ऐसी व्यवस्था में रहने के लिए .सरकार ने तो मंहगाई के मुद्दे पर बोलना ही बंद कर दिया है .

मुझे भी लगता है कि अब मंहगाई शब्द को शब्दकोश से हटा देना चाहिए ,क्योंकि अब इस शब्द से कोई ध्वनि ही नहीं निकलती .कोई अर्थ ही नहीं उपजता. मंहगाई शब्द अब सियासत के लिए कोई मुद्दा ही नहीं है सड़क पर आकर सियासत करने वाले लोग भी मंहगाई को लेकर कुछ कर पाने की स्थिति में नजर नहीं आ रहे. अब मंहगाई से निबटन का अंतिम विकल्प यही है कि जनता नवशृंगारित मंदिरों में जाकर माला फेरे ,शायद काल,महाकाल की कृपा हो जाये ! मंहगाई से निबटने के सबके अपने-अपने तरीके हैं. प्रधानमंत्री जी मंदिरों में तपस्या कर रहे हैं और राहुल गांधी सड़कों पर .जनता दोनों तपस्वियों को देखकर अभिभूत है .जिस देश की जनता अभिभूत रहना सीख ले उस देश की जनता के लिए सिर्फ प्रार्थना की जा सकती है ,और कुछ नहीं .
@ राकेश अचल

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