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नरम और गरम दोनों थे मुलायम सिंह@आलोचना और श्रद्धा के बराबर के हकदार एक राजनेता, वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का विश्लेषण

राकेश अचल, लेखक देश के जाने-माने पत्रकार और चिंतक हैं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित होते हैं।

एक सामान्य शिक्षक से देश के रक्षामंत्री के उच्च पद पर पहुंचे मुलायम सिंह यादव नहीं रहे।एक धुर समाजवादी थे।एक सहृदय नेता के रूप में वे सदैव याद किए जाएंगे।

22 नवम्बर 1939 को जन्मे मुलायम सिंह यादव के लिए शोक करने का कोई कारण नहीं है। उन्होंने अपने पुरुषार्थ से जो भी हासिल हो सकता था, हासिल किया और देश की राजनीति में अपनी पहचान बनाई। वे आलोचना और श्रद्धा के समान हकदार रहे। जैसा मैंने पहले कहा कि वे नरम और गरम दोनों स्वभाव के नेता रहे।उनका भाजपा से मुकाबला और दोस्ती बराबर की रही ।

मुझे मुलायम सिंह यादव जी से मिलने के अनेक अवसर मिले।उनका अस्पष्ट उच्चारण और ठेठ देसी लहजा अंत तक नहीं बदला।वे लालू यादव जैसे यादव नहीं रहे।वे विदूषक भी नहीं थे।वे संसद में हमेशा सुने गये। उन्होंने हमेशा गरीब, किसान, वंचित और शोषित की पैरवी की, हालांकि वे खुद गरीब नहीं थे। परिवारवाद में उनका पक्का भरोसा था।वे जातीय राजनीति के प्रबल पक्षधर थे।आदि आदि।

मुलायम सिंह यादव के रिश्ते कांग्रेस के माधव राव सिंधिया से भी थे तो वामपंथी राजा से भी। उन्होंने राजनीति में संवाद को कभी समाप्त नहीं किया। बसपा की सुप्रीमो बहन मायावती से उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा, किंतु वे उनकी बहन बनी रहीं। मुलायम सिंह यादव के अनेक प्रसंग याद किए जाने लायक हैं। सबसे बड़ा प्रसंग रक्षामंत्री के रूप में शहीद सैनिकों के शव सम्मान उनके घर तक भेजने की व्यवस्था करने का था।वे दूध के धुले नहीं रहे, लेकिन उन्होंने चारा भी नहीं खाया। राजनीति को दुहना उन्हें आता था सो उन्होंने ये काम पूरी क्षमता से किया।

वे विनोदी स्वभाव के नेता रहे।वे फैशनपरस्त नहीं थे।उनकी पोशाक कभी नहीं बदली।वे बहुरूपिया भी नहीं रहे।वे जो थे सो थे।उनका न होना उप्र की राजनीति को फीका कर गया।अब उप्र में उन जैसा कोई नहीं है। मुलायम सिंह ने कांग्रेस के अखंड शासन को उखाड़ फेंका था। दिसंबर 1988 से अब तक कांग्रेस उप्र में अपने पांव पर खड़ी नहीं हो सकी।
सेफई के मुलायम सिंह ने भाजपा और बसपा को सत्ता में चैन से नहीं रहने दिया, लेकिन केंद्र की राजनीति में वे भाजपा के साथ रहे। उन्होंने अपनी समाजवादी पार्टी बनाने से पहले पुरानी सोशलिस्ट पार्टी, लोकदल, और जनता दल में काम किया।वे सौभाग्यशाली रहे कि उनके सामने ही उनका बेटा अखिलेश यादव भी देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बन गया।

मुलायम सिंह जी उप्र के प्रमुख समाजवादी नेता रामसेवक यादव के प्रमुख अनुयायी थे तथा इन्हीं के आशीर्वाद से मुलायम सिंह 1967 में पहली बार विधान सभा के सदस्य चुने गये और मन्त्री बने। 1992में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाई। वे तीन बार क्रमशः 5 दिसम्बर 1989 से 24 जनवरी 1991 तक, 5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1996 तक और 29 अगस्त 2003 से 11 मई 2007 तक उत्तर प्रदेश के मुख्य मन्त्री रहे। इसके अतिरिक्त वे केन्द्र सरकार में रक्षा मन्त्री भी रहे।

उत्तर प्रदेश में यादव समाज के सबसे बड़े नेता के रूप में मुलायम सिंह की पहचान रही। उत्तर प्रदेश में सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने में मुलायम सिंह ने साहसिक योगदान किया। मुलायम सिंह की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष नेता की थी। उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी समाजवादी पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी माना जाता है। उत्तर प्रदेश की सियासी दुनिया में मुलायम सिंह यादव को प्यार से नेता जी कहा जाता था।
केंद्रीय राजनीति में मुलायम सिंह का प्रवेश 1996 में हुआ, जब काँग्रेस पार्टी को हरा कर संयुक्त मोर्चा ने सरकार बनाई। एच. डी. देवेगौडा के नेतृत्व वाली इस सरकार में वह रक्षामंत्री बनाए गए थे, किंतु यह सरकार भी ज़्यादा दिन चल नहीं पाई और तीन साल में भारत को दो प्रधानमंत्री देने के बाद सत्ता से बाहर हो गई। ‘भारतीय जनता पार्टी’ के साथ उनकी विमुखता से लगता था, वह काँग्रेस के नज़दीक होंगे, लेकिन 1999 में उनके समर्थन का आश्वासन ना मिलने पर काँग्रेस सरकार बनाने में असफल रही और दोनों पार्टियों के संबंधों में कड़वाहट पैदा हो गई। जो अंत तक रही। मुलायम सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🏽
@ राकेश अचल

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