@शब्द दूत ब्यूरो (06 अक्टूबर 2022)
अल्मोड़ा। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के डेढ़ सौ साल से अधिक के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि यहाँ रावण का पुतला नही जल पाया है। दरअसल बीती शाम यहाँ दो पुतला समितियो के बीच से शुरू हुआ विवाद देर रात तक नहीं सुलझ पाया। इस वजह से रावण का पुतला बनाने वाली समिति ने दशहरा महोत्सव समिति पर कई आरोप लगाते हुए रावण का पुतला नहीं जलाया। जिस जगह पर पुतला बनाया। वापस लाकर उस जगह पर नन्दादेवी मंदिर के पास ही रावण का पुतला खड़ा कर दिया गया। हालांकि यहां इस दौरान सांकेतिक रूप से रावण के पुतले का सिर्फ एक सिर ही जलाया गया। यह पुतला आज भी इसी जगह पर पूरा खड़ा है। रावण का पुतला नहीं जलाए जाना अल्मोड़ा में चर्चा का विषय बना है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार दशहरे के दिन समितियों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया। विवाद शाम को उस वक्त हुआ जब एक पुतला समिति के एक युवक ने रावण पुतला समिति के नंदादेवी निवासी धनंजय से अभद्रता कर दी। धनंजय ने बताया कि एक युवक ने पहले उनका हाथ पकड़ा। फिर वह कमीज फाड़ने लगा। उन्होंने बताया कि इसकी जानकारी उन्होंने दशहरा महोत्सव समिति को दी। दशहरा महोत्सव समिति से अभद्रता करने वाला युवक जिस पुतला समिति से है, उस पुतले को बाहर करने की मांग की। उनका आरोप है कि दशहरा महोत्सव समिति ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसके बाद चौक बाजार में विरोध में रावण के पुतले को रोका गया। इस वजह से राम का रथ भी चौक बाजार में रूक गया। हालांकि इस बीच किसी तरह समझौता करने के बाद रावण के पुतले को बाजार में ले जाया गया। इसके बाद फिर दशहरा समिति और रावण का पुतला बनाने वाली (नंदादेवी) समिति के बीच विवाद हो गया। यह विवाद इतना बढ़ गया कि रावण का पुतला बनाने वाली समिति ने स्टेडियम में रावण का पुतला जलाने से इंकार कर दिया। इसके बाद रावण का पुतला बनाने वाली समिति ने रावण के पुतले को बिना जलाए वापस उसी स्थान नंदादेवी मंदिर के पास खड़ा कर दिया जहाँ पर उसे बनाया गया था। रावण के पुतले के न जलने को लेकर अल्मोड़ा में काफी चर्चा है।
दशहरा समिति के अध्यक्ष अजीत कार्की का कहना है दो पुतला समितियो के बीच हुए विवाद को शांत करने की काफी कोशिश की गई, लेकिन उसके बाद भी रावण का पुतला नहीं जलाया गया। ऐसे लोगों को अगले साल से पुतला बनाने के लिए बैन किया जाएगा।
अल्मोड़ा का दशहरा देश मे काफी प्रसिद्ध है। यहाँ रावण परिवार के 2 दर्जन से अधिक कलात्मक विशालकाय पुतले बनाये जाते हैं। वरिष्ठ रंगकर्मी नवीन बिष्ट के अनुसार अल्मोड़ा में सबसे पहले बद्रेश्वर मंदिर में रामलीला का आयोजन हुआ था। बताया जाता है कि तब सिर्फ रावण का पुतला बनाया गया था, लेकिन बाद में धीरे धीरे रावण परिवार के पुतलों की संख्या बढ़ती गयी। आज यह संख्या 2 दर्जन से ज्यादा है। नवीन बिष्ट का कहना है कि डेढ़ सौ साल से अधिक के इस इतिहास में ऐसा कभी नही हुआ। यह परंपरा के साथ खिलवाड़ और शर्मनाक है।