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इफ्तार की दावत और अदावत@राकेश अचल

राकेश अचल, लेखक देश के जाने-माने पत्रकार और चिंतक हैं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित होते हैं।

जरूरी नहीं है कि जो काम प्रधानमंत्री जी का है उसे वे ही करें.प्रधानमंत्री जी के पास करने के लिए दूसरे बहुत से काम हैं इसलिए कुछ काम यदि दूसरे लोग करते हैं तो ये अच्छी बात है .परम्पराओं को बनाये रखने का ठेका आखिर किसी एक व्यक्ति का थोड़े ही है ? राष्ट्रीय जनता दल के युवा नेता तेजस्वी ने शुक्रवार को अपने यहां इफ्तार की दावत देकर एक मरती हुई परम्परा को सींच दिखाया .

देश में ये पहला मौक़ा है जब प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या लोकसभा अध्यक्ष या राजयसभा उपाध्यक्ष के यहां बीते सात साल में कोई इफ्तार पार्टी नहीं हुई .अन्यथा एक ज़माना था कि दिल्ली में ही नहीं अपितु पूरे देश में और भाजपा समेत सभी राजनीतिक दलों में इफ्तार पार्टियां आयोजित करने की होड़ लगी रहती थी.लेकिन अब दौर बदल चुका है .इफ्तार पार्टी आयोजित करो तो आफत और न करो तो भी आफत .इसलिए जब से केंद्र में और तमाम राज्यों में भाजपा की सत्ता आयी है तब से इफ्तार पार्टियों पर विराम लग गया है .अतीत में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी और मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने इफ्तार की पार्टियां दीं थीं या उनमें हिस्सा लिया था ,लेकिन अब कोई हिम्मत नहीं करता .भाजपा के मुस्लिम नेता भी ये हिम्मत नहीं दिखा पा रहे .

हमेशा से तुष्टिकरण के आरोपों से घिरी कांग्रेस भी अब इफ्तार पार्टियां आयोजित करना भूल गयी है .स्वाभाविक भी है ,लगातार पराभव का शिकार कांग्रेस क्या-क्या याद करे और क्या-क्या भूल जाये कहना कठिन है ,लेकिन खुशी की बात है कि राष्ट्रीय जनता दल इस परम्परा को नहीं भूला.तब भी नहीं भूला जब की उसके संस्थापक लालू प्रसाद यादव जेल में हैं और खुद राजद विपक्ष में .इस लिहाज से मुझे लगता है कि आज की तारीख में राजद हर तरह से कांग्रेस से बेहतर और दमदार राजनीतिक दल है .

तेजस्वी यादव द्वारा दी गयी इफ्तार पार्टी में अच्छी बात ये रही कि सुशासन बाबू यानि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भारी सुरक्षा के बीच शिरकत करने पहुंचे . इफ्तार पार्टी में चिराग पासवान, भाजपा नेता सैयद शाहनवाज हुसैन और राबड़ी देवी भी मौजूद रहीं. पिछली बार गठबंधन टूटने से कुछ दिन पहले 2017 में राबड़ी देवी के आवास पर आयोजित इफ्तार में नीतीश कुमार उपस्थित थे. बिहार विधानपरिषद के नेता और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अवधेश नारायण सिंह भी तेजस्वी की इफ्तार पार्टी में पहुंचे. तेजस्वी यादव के बड़े भाई तेज प्रताप यादव और लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती भी इफ्तार पार्टी में थीं.

आज जब देश में चौतरफा हिंदुत्व और आस्थाओं के नाम पर बार-बार बल्कि दिन-रात मुगलकाल को कोसने की होड़ लगी है तब इफ्तार पार्टी आयोजित करना कलेजे का काम है .कलेजे का काम इसलिए भी है क्योंकि आज पूरे देश में समप्र्दायिकता और धार्मिक उन्माद पूरे वेग पर है .सरकार से लेकर सरकारी पार्टी और उसके अनुषांगिक संगठन हर तरह से हिंदुत्व के उभार में लगे हैं.बेचारों का बस नहीं चल रहा अन्यथा वे रातोंरात भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दें ,लेकिन समस्या ये है कि 20 करोड़ मुसलमानों को बेचारे उठाकर देश के बाहर फेंक नहीं सकते .

सबका साथ और सबका विकास का नारा दुहराने वाले प्रधानमंत्री जी सरकारी खर्च पर प्रकाशपर्व आयोजित करा सकते हैं,उसके लिए लाल किला खोल सकते हैं लेकिन एक अदद इफ्तार पार्टी आयोजित नहीं कर सकते .कैसे करें ,नागपुर नाराज हो जाएगा ? इफ्तार पार्टी से भारत को हिन्दू राष्ट्र बाने के एजेंडे पर प्रतिकूल असर पडेगा .स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी ने इफ्तार की दावतें आयोजित करने की गलती की थी ,सो वर्तमान प्रधानमंत्री जी इस गलती को दोहरा नहीं सकते .दोहराना भी नहीं चाहिए ,

बिहार की तारीफ़ करना होगी कि साम्प्रदायीएक सद्भाव बनाये रखने और पुरानी रिवायतों को बनाये रखने में वो आज भी दूसरे राज्यों से आगे हैं.आगे ही नहीं है बल्कि सतर्क भी है.यहां भाजपा को भी इफ्तार पार्टी देने से नागपुर और दिल्ली नहीं रोक पाती ,क्योंकि मजबूरी है . हाल ही में भाजपा के सुशील मोदी ने भी इफ्तार पार्टी आयोजित की थी. सुशील मोदी पहले भी विधायक के रूप में, फिर उप मुख्यमंत्री के रूप में इफ्तार का आयोजन करते रहे. सुशील मोदी ने बुधवार को सांसद के रूप में इफ्तार का आयोजन किया. मोदी बिहार में पिछले तीस वर्षों से इफ्तार की दावत आयोजित करते चले आ रहे हैं.
साम्प्रदायिक सदभाव की इस परम्परा को जिस राजनीतिक दल ने भुला दिया है उसमें भाजपा के अलावा कांग्रेस भी एक पार्टी है .कांग्रेस ये सब क्यों भुला बैठी है ,ये कांग्रेस जाने लेकिन इस वजह से कांग्रेस को ही नहीं बल्कि देश के साम्प्रदायिक सद्भाव को कितना नुक्सान पहुंचा है ,ये हम सब जानते हैं. आज मध्यप्रदेश के खरगोन में साम्प्रदायिक हिंसा के कई दिन बाद भी कर्फ्यू नहीं उठाया जा सका ,क्योंकि अब वैसे लोग हैं ही नहीं जो समाज के बीच जाकर टूटते भरोसे को बहाल करने में मदद कर सकें .आज दिल्ली में जहांगीर पूरी में जेसीबी भेजने और दंगाइयों को सबक सीखने की पहल करने के लिए अमित शाह जैसे जिम्मेदार नेता और मंत्री तो हैं लेकिन जहांगीर पूरी में पदयात्रा करने का साहस किसी में नहीं है .

दंगे कांग्रेस के 55 साल से ज्यादा के राज में कम नहीं हुए ,लेकिन इन दंगों के बाद सत्तापक्ष के अलावा बहुत सी ऐसी एजेंसियां थीं जो जख्मों पर मरहम लगाने और सदभाव बहाल करने के लिए आगे आती थीं .अब तो चारों तरफ अन्धेरा ही अन्धेरा है ,गांधी के अनुयायी तक भूमिगत हैं .स्वयंसेवक दंगाग्रस्त इलाकों में पीड़ितों की मदद के लिए जा नहीं सकते,वे तो खुद दंगाइयों के खिलाफ जेसीबी लेकर खड़े हैं ,ऐसे में तेजस्वी की इफ्तार पार्टी एक उम्मीद बांधती है .सुशील मोदी का शील और साहस अच्छा लगता है .देश में जो संविधान की शपथ लेकर सत्ता में बैठे हैं उन्हें निडर होकर इस तरह की सैकड़ों साल पुरानी रिवायतों की रक्षा करना चाहिए ,अन्यथा ये भारत वो भारत नहीं रहेगा जो था ,जो है .आज भारत को नए सिरे से गढ़ने की जो सनक लोगों के सर पर सवार है वो बेहद खतरनाक है .इस सनक की वजह से हम लगातार पिछड़ते जा रहे हैं .

ग्वालियर में एक ज़माने में हमने पूर्व मंत्री रमाशंकर के आवास पर आयोजित इफ्तार पार्टी में हिस्सा लिया था ,अब न रमाशंकर ग्वालियर में हैं और न उन जैसे दूसरे लोग हैं जो रोजेदारों के लिए इफ्तार पार्टी आयोजित करने का साहस दिखा सकें .ग्वालियर में साम्प्रदायिक सदभाव केलिए अतीत में हिन्दू,मुस्लिम,सिख और ईसाइयों के पूजाघर बनाने वाले सिंधिया परिवार के चश्मों-चिराग में भी अपनी पुरानी रिवायतों को बचाये रखने का हौसला नहीं रहा .गनीमत है कि अभी सिंधिया परिवार की और से गोरखी में ताजिया रखवाया जाता रहा है,आगे क्या होगा भगवान जाने .
@ राकेश अचल

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