
सनक यानि जूनून ,जूनून यानि जिद,या हठ .बिना इस तामसी गुण के मनुष्य कोई काम पूरा नहीं कर सकता .इसी जूनून के चलते अब सोलहवीं सदी की बुंदेलों की रियासत रहे दतिया शहर की रंगत बदलने की कोशिश की जा रही है .इस कोशिश के पीछे हैं प्रदेश के टिनोपाल मंत्री यानि डॉ नरोत्तम मिश्र .जो काम पिछले पांच सौ साल में दतिया के संस्थापक नहीं कर पाए उसे डॉ नरोत्तम मिश्रा पूरा करने में लगे हैं .
किसी व्यक्ति विशेष की कोशिशें जब इतिहास बनाने की हों तो उनके बारे में लिखना बनता है .हम लोग दतिया को बुंदेलखंड का बनारस कहते हैं ,यहां तालाबों ,मंदिरों ,महलों की ऐसी छटा है जो आपका मन सहज ही मोह लेती है .रियासत के जमाने में यहां के शासकों ने बहुत कुछ किया ,लेकिन जो रह गया उसे आज के सुलतान पूरा कर रहे हैं .आज धर्म के नाम पर माँ पीतांबरा को खुश करने के लिए पूरे शहर को पीत वर्ण में रंगने की तैयारी चल रही है .देश में एक गुलाबी नगरी जयपुर है तो एक पीत नगर दतिया भी हो सकता है .
दतिया के पास सब कुछ है ,बहुत कुछ पहले से था और बहुत कुछ डॉ नरोत्तम मिश्र के यहां से विधायक बनने के बाद जोड़ा गया. रियासत के समय महल ही ज्यादा बनते थे,सो यहां महलों की कमी नहीं है. वीर सिंह महल है ,गोविंद महल है,राजगढ़ महल है .कुछ लोग दतिया को लघु वृंदावन की तरह भी देखते हैं क्योंकि दतिया में अनेक खूबसूरत मंदिर बने हुए हैं। अवध बिहारी मंदिर, शिवगिर मंदिर, विजय राघव मंदिर, गोविन्द मंदिर और बिहारीजी मंदिर यहां के लोकप्रिय मंदिर हैं।लेकिन दतिया की ख्याति 1935 में स्वामी जी द्वारा दतिया में स्थापित पीतांबरा पीठ की वजह से है. ये पीठ एक महाभारत कालीन शिव मंदिर के पास स्थित है .
दतिया एक सिद्ध तांत्रिक पीठ है ,यहां माँ पीतांबरा के अलावा माँ बगुलामुखी,धूमावती का मंदिर भी है. 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय राष्ट्ररक्षा के लिए यहां तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी एक यज्ञ कराया था .आम जनता के साथ ही यहां की पीठ के प्रति राजनीति में काम करने वालों कोई अटूट आस्था है. सत्ता में स्थापित रहने की मंशा पालने वाला हर नेता यहां माथा टेकता है और गुपचुप अपने लिए यज्ञ,जप-तप करता रहता है .इस तरह से ये पीठ इस शहर की अर्थव्यवस्था की भी एक अघोषित धुरी भी है .
ये संदर्भ आपको इसलिए दे रहा हूँ ताकि आप जान सकें की दतिया की रंगत बदलने की सनक ,जूनून आज से पहले किसी को नहीं था. न तत्कालीन शासकों को और न आजादी के बाद यहां से चुने जाने वाले किसी जन प्रतिनिधि को .यहां के मौजूदा विधायक जो प्रदेश के गृहमंत्री भी हैं .माँ पीतांबरा के अनन्य भक्त हैं. दतिया में माँ पीतांबरा को उनके भक्त स्नेह और शृद्धा से माई कहते हैं .डॉ नरोत्तम मिश्रा दतिया के नहीं हैं ,वे यहां 2018 में उनकी पारम्परिक डबरा सीट आरक्षित होने के बाद यहाँ से चुनाव लड़ने आये थे .तब से अब तक वे यहां से तीन चुनाव लड़ और जीत चुके हैं हालाँकि उनका एक चुनाव अवैध घोषित होने के बाद वैध घोषित हुआ था .डॉ नरोत्तम ने दतिया को जिस तरह से विकसित करने में दिन-रत एक किया उसकी वजह से यहां की जनता ने भी उन्हें अपना लिया .अब यहां मिश्रा जी की मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता,हिलता है तो उसे टूट कर गिरना पड़ता है ,
बहरहाल बात दतिया की रंगत बदलने की है. दतिया की रंगत यहाँ मेडिकल कालेज समेत अनेक नए विकास कार्यों की
वजह से बदली है लेकिन उसका रंग पीला कभी नहीं हुआ.इस बार ये भी होगा .आप इसे धार्मिक कृत्य मानिये लेकिन इसका मकसद अगले विधानसभा चुनाव पहले से अपनी जमीन को मजबूत करना ही है ,अन्यथा आप खुद से ये सवाल कर सकते हैं कि मिश्रा जी को ये सनक 2008 से 2022 तक क्यों सवार नहीं हुई ? दतिया के मतदाताओं को धार्मिक उन्माद में भिगोकर चुनाव जीतने की बात कड़वी है लेकिन सच है दुर्भाग्य ये है कि इस सच को कोई स्वीकार करने वाला नहीं है.
दतिया का रंग पीला करने से यदि दतिया की दुरावस्था में भी तब्दीली आ रही हो तो डॉ मिश्रा को बधाई दी जाना चाहिए. उनकी प्रेरणा से दतिया के इतिहास में पहलीबार माँ म पीतांबरा 12 लाख से बने रथ पर सवारी करेंगी.उनके ऊपर पुष्प वृष्टि के लिए हैलीकाप्टर की सेवाएं ली जाएँगी. शहर के सभी होटल और सराय वालों को एक दिन के लिए अपने संस्थान निशुल्क रखने की हिदायत दी गयी है. कहने को ये सब स्वेच्छा से हो रहा है, जन भागीदारी से हो रहा है लेकिन इस सबके पीछे डॉ मिश्रा की इच्छा है .इसके खिलाफ जाने की हिम्मत भला कौन कर सकता है ? डॉ मिश्रा ही चाहते हैं कि दतिया को पीत रंग में रंगा जाये ..अच्छी बात है .क्योंकि यदि शहर की रंगत न बदली तो आने वाले चुनाव में मिश्रा जी का भविष्य कैसे बनेगा ?
माँ पीतांबरा का मै भी अनन्य भक्त हूँ ,लेकिन इस बार माँ की जयंती पर जो प्रदर्शन किया जा रहा है उससे में आशंकित हूँ .मुझे आशंका है कि ये पवित्र शहर भी कहीं दूसरे शहरों की तरह धार्मिक उन्माद का शिकार न बन जाये .इस समय पूरे देश और प्रदेश में लोग अपने -अपने स्तर पर धार्मिक उन्माद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं ,क्योंकि कुछ लोगों को धार्मिक उन्माद ही सबसे सुरक्षित कवच दिखाई दे रहा है .हकीकत ये है कि जैसे प्रदेश में सरकारी स्तर पर राम नवमी मनाई गयी ठीक उसी तर्ज पर दतिया में पूरा प्रशासन मंत्री जी के नेतृत्व में आयोजित होने जा रहे समारोह के लिए एक पांव पर खड़ा होकर काम कर रहा है .
मुझे स्थानीय विधायक के भक्तिभाव पर कोई संदेह नहीं है .वे मां के मुझसे भी बड़े भक्त हैं .वे जब मंत्री नहीं भी थे तब भी अपने समर्थकों और पत्रकारों को वैष्णो देवी की यात्रा कराते रहे हैं .जब सरकार निशुल्क तीर्थ दर्शन यात्रा कराती है तो एक मंत्री निशुल्क देवी दर्शन नहीं करा सकता ?
लोग दतिया को पीला रंगे,न रंगे इससे ग्वालियर वालों का या पूरे देश का क्या लेना-देना ? लेकिन जो हो रहा है ,जो हो सकता है उसके ऊपर नजर रखना आवश्यक भी है. आप समझ लीजिये कि कम से कम इस बहाने कुछ और लोग दतिया को गूगल पर खोजेंगे .दतिया आएंगे और देखेंगे कि दतिया की रंगत कैसे बदल रही है,कौन बदल रहा है ?माँ को ये काम करना होता तो वे बहुत पहले कर चुकी होतीं .
@ राकेश अचल