विनोद भगत
तीन तलाक बिल पास होने पर पूरे देश में खुशियां मनाई जा रही है। देश ने एक इतिहास रच दिया है। हालांकि दुनिया के कई देशों में इसे बैन किया जा चुका है। मुस्लिम महिलाओं के लिए सच में आजादी मनाने का दिन है। हालांकि सरकार के इस कदम का स्वागत किया जाना चाहिए।
पर इस खुशी के दौरान देश के बहुसंख्यक हिन्दू महिलाओं पर तलाक के दंश को हम भूल गये हैं। मुस्लिम महिलाओं के मुकाबले हिन्दू महिलायें कहीं ज्यादा इस दंश को झेल रही हैं। इस लेख में हम आपको बताने जा रहे हैं कि तलाक के मामले में हिन्दू महिलाओं की स्थिति ज्यादा भयावह है। हालांकि हिन्दू महिलाओं की चिंता छोड़ दी गई है। सबका ध्यान मुस्लिम महिलाओं के तलाक की ओर आकृष्ट कर दिया गया है। आंकड़े बताते हैं कि हिन्दू महिलाओं जो कि तलाक के कारण प्रताड़ना झेल रहीं हैं उनके लिए कोई राहत नहीं देने वाला है। साफ कहा जा सकता है कि तीन तलाक का मामला सिर्फ राजनीति से प्रेरित है। हालांकि तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं के प्रति सहानुभूति होनी चाहिए इसमें कोई संदेह नहीं है। लेकिन महिलायें सभी हैं और न्याय भी समान रूप से होना चाहिए। आखिर हिन्दू महिलाओं के लिए कौन चिंता करेगा।
आपको एक कटु सत्य इन आंकड़ों से पता चलेगा। ये आंकड़े महज आठ जिलों के हैं वही देश के मुस्लिम बहुल इलाकों के हैं। यदि पूरे देश में इसके आंकड़े इकठ्ठा किये जायें तो स्थिति इससे भी भयावह होगी। 2011 से 2015 के बीच इन आठ जिलों, जैसे- कन्नूर (केरल), नासिक (महाराष्ट्र), करीमनगर (तेलंगाना), गुंटूर (आंध्र प्रदेश), सिकंदराबाद (हैदराबाद), मलप्पुरम (केरल), एरनाकुलम (केरल) और पलक्कड़ (केरल) में मुसलमानों में 1,307 हिंदू में 16,505 ईसाइयों में 4,827 और सिखों में 8 तलाक के मामले सामने आए हैं।इन आंकड़ों में साफ कहा गया है कि मुसलमानों से ज्यादा हिंदुओं में तलाक हुए हैं। दहेज, घरेलू हिंसा, बाल विवाह, स्त्री भेदभाव जैसे मुद्दे सभी समुदायों में महिलाओं को प्रभावित करने वाले है जिसपर ध्यान देने की जरूरत है, न कि सिर्फ मुस्लिम समुदाय की तरफ इशारा किया जाना चाहिए।