भारत आजादी के बाद सबसे खराब आर्थिक स्थिति से गुजर रहा है। लोकलुभावन योजनाओं के कारण देश आज दाने-दाने को मोहताज हो गया है। भारत के कई राज्य भी लोकलुभावन घोषणाओं के कारण बदहाली के कगार पर पहुंच गए हैं।
@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो (05 अप्रैल, 2022)
चुनावों में मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों में सबकुछ फ्री देने की होड़ मची रहती है और इस कारण देश के कई राज्य बदहाली के कगार पर पहुंच गए हैं। देश के कई शीर्ष नौकरशाहों ने चेतावनी दी है कि अगर इस प्रवृत्ति पर रोक नहीं लगी तो ये राज्य जल्द ही कंगाल हो जाएंगे। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी चिंता से अवगत भी कराया है।
प्रधानमंत्री के साथ एक बैठक में कुछ सचिवों ने इस बारे में खुलकर बात की। उनका कहना था कि कुछ राज्य सरकारों की लोकलुभावन घोषणाओं और योजनाओं को लंबे समय तक नहीं चलाया जा सकता है। अगर इन पर रोक नहीं लगी तो इससे राज्य आर्थिक रूप से बदहाल हो जाएंगे। उनका कहना है कि लोकलुभावन घोषणाओं और राज्यों की राजकोषीय स्थिति के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है।
सूत्रों के मुताबिक इनमें से कई सचिव केंद्र में आने से पहले राज्यों में अहम पदों पर काम कर चुके हैं। उनका कहना है कि कई राज्यों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और अगर वे भारतीय संघ का हिस्सा नहीं होते तो अब तक कंगाल हो चुके होते। अधिकारियों का कहना है कि पंजाब, दिल्ली, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों की सरकारों ने जो लोकलुभावन घोषणाएं की हैं, उन्हें लंबे समय तक नहीं चलाया जा सकता है। इसका समाधान निकालने की जरूरत है।
कई राज्यों में विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारें लोगों को मुफ्त बिजली दे रही है। इससे सरकारी खजाने पर बोझ पड़ रहा है। इससे हेल्थ और एजुकेशन जैसे अहम सामाजिक सेक्टरों के लिए फंड की कमी हो रही है। बीजेपी ने भी हाल में हुए विधानसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश और गोवा में मुफ्त एलपीजी कनेक्शन देने के साथ ही दूसरी कई लोकलुभावन घोषणाएं की थीं।
इसी तरह छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे राज्यों ने पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने की घोषणा की है। केंद्र सरकार के अधिकारियों ने भी इस पर चिंता जताई है। हालांकि प्रधानमंत्री के साथ मीटिंग में इसका जिक्र नहीं हुआ था। अधिकारियों का कहना है कि चुनावों में राजनीतिक दलों के बीच रेवड़ियां बांटने की होड़ मची रहती है। यह राज्यों और केंद्र सरकार की आर्थिक स्थिति के लिए अच्छी बात नहीं है।
राज्यों को केंद्रीय करों और जीएसटी में हिस्सा मिलता है लेकिन उनके पास रेवेन्यू के सीमित संसाधन हैं। राज्यों सरकारों को शराब और पेट्रोल पर वैट से रेवेन्यू मिलता है। साथ ही प्रॉपर्टी और गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन से भी उनकी कमाई होती है। इस तरह उनके पास लोकलुभावन घोषणाओं के लिए बजट की व्यवस्था करने में सीमित संसाधन हैं। विपक्षी दलों के शासन वाले कई राज्यों ने केंद्र पर फंड रोकने का आरोप लगाया है।