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लोकतंत्र में निब्बू पर संकट

राकेश अचल, लेखक देश के जाने-माने पत्रकार और चिंतक हैं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित होते हैं।

आज आप शीर्षक पढ़कर परेशान हो सकते हैं की लोकतंत्र का निब्बू से क्या रिश्ता और उसके ऊपर किस तरह का खतरा मंडरा रहा है। दरअसल इसमें आपकी कोई गलती है ही नहीं,सारी गलती अंग्रेजों की है जिन्होंने आपको ‘बनाना रिपब्लिक ‘ यानि केले के लोकतंत्र के बारे में तो बताया लेकिन निब्बू के लोकतंत्र के बारे में नहीं बताया। आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में निब्बू सचमुच खतरे में है। बाजार की साजिश ने निब्बू आम आदमी से छीन लिया है।

निब्बू को अंग्रेजी में ‘ लेमन’ कहते हैं ये जानकारी हमें तब से है जब हमने न हिंदी पढ़ी थी और न अंग्रेजी। हमें भाषा ज्ञान से पहले ‘ लेमन’ का ज्ञान था क्योंकि उसे हमारे घर के बाहर का पंसारी ‘ लेमनचूस’ के नाम से बेचता था। लेमनचूस में लेमन का स्वाद होता था और उसे चूसना पड़ता था जबकि लेमनचूस कोई फल नहीं था आम की तरह। बुंदेलखंड के लोगों की शब्द सामर्थ्य के चलते ‘लेमनचूस’ को ‘कंपट’ भी कहा जाता है । मजे की बात ये कि लेमनचूस बनता संतरे की कली के आकार का है लेकिन मजा निब्बू का देता है।
भगवान ने हम हिन्दुस्तानियों को निब्बू बहुत सोच समझकर उपहार के रूप में दिया है । निब्बू न होता तो मुमकिन है की हमारे जीवन में न ताजगी होती और न खटास,मिठास। निब्बू सिर्फ निब्बू नहीं है बल्कि गुणों की खान है। जब लोग विटामिन के बारे में नहीं जानते थे तब भी निब्बू हमरे षटरसों में शामिल था। हम ताजा निब्बू तो इस्तेमाल करते ही थे उसके रस को सुखाकर टाटरी के रूप में भी इस्तेमाल करते थे। क्योंकि निब्बू हर मौसम में तो मिलता नहीं था। ये तो विज्ञान की कृपा है कि अब हमारे पास ‘ कोल्ड स्टोरेज ‘ हैं और हम निब्बू का स्वाद बारह महीने ले सकते हैं।
विज्ञान का जहाँ लाभ है वहीं नुक्सान भी है । कोल्डस्टोरेज मिले तो व्यापारियों ने निब्बू को अपनी मुठ्ठी में कर लिया। सीजन में जो निब्बू आम आदमी की तरह मारा-मारा फिरता था ,वो ही निब्बू आज दो सौ रूपये किलो हो गया है। निब्बू की किस्मत ही कहिये जो आज उसकी हैसियत सेव् से भी कहीं ज्यादा है। निब्बुओं में सिर्फ ताजगी ही नहीं होती बल्कि सनसनाहट पैदा करने की ताकत भी होती है । सुगंध तो होती ही है तभी तो शीतल पेय के विज्ञापनों में ‘ नीबू की ताजगी और सनसनी एक साथ बिकती है। अब तो निब्बू ने साफ़-सफाई के मामले में भी अपनी जगह बना ली ह। बर्तन मांजने के लिए अब बिना निब्बू के कोई साबुन बनता ही नही। निब्बू ने महरियों के हाथों को बदबू से मुक्ति दिला दी है,इस तरह निब्बू अब मुक्तिदाता भी है।
आप निब्बू चूसें या पियें आपको फायदा करता है । विटामिन सी जैसे ही जिव्हा का स्पर्श करता है आप सी-सी करने करने लगते है। निब्बू की ही ताकत है कि वो आपका जायका बदल सकता है । आपकी जुबान चाहे महंगाई की वजह से कड़वी हो या ज्वर की वजह से ,बस एक निब्बू जुबान पर रख लीजिये,सब कुछ ठीक हो जाएगा। निब्बू के बारे में आपको ‘गूगल ज्ञान’ नहीं परोस रहा,बल्कि जो बता रहा हूँ अपने अनुभव से बता रहा हूँ। मेरे अनुभवों पर बहुत से लोग यकीन करते हैं और बहुत से नहीं।
आपको शायद पता ही होगा कि निब्बू में अंग्रेजों से ज्यादा दोफाड़ करने की ताकत भी है । आप निब्बू को अच्छे-भले दूध में डाल दीजिये ,पलक झपकते ही नीर और छीर को अलग-अलग कर देगा ,जिअसे की दोनों में कोई रिश्ता कभी रहा ही न हो। यानि यदि निब्बू न होता तो आप बिना नीर का छीर यानि पनीर खा ही न पाते । आखिर दूध को फाड़ता कौन ? सियासत के अलावा दो फाड़ करने की ताकत नीयब्बो के अलावा किसी के पास नहीं है। निब्बू की हैसियत देखकर घास ने भी अपने परिवार में एक किस्म पैदा की और नाम रख लिया ‘लेमनग्रास ‘ लेकिन उसे भी गधे चार गए।
बात निब्बू की चल रही थी तो आपको बता दूँ कि दुनिया में सबसे अधिक नीबू का उत्पादन भारत में होता है। यह विश्व के कुल नीबू उत्पादन का 16 प्रतिशत भाग उत्पन्न करता है। भारत के अलावा मैक्सिको, अर्जन्टीना, ब्राजील एवं स्पेन अन्य मुख्य उत्पादक देश हैं। हम विश्व के दस शीर्ष नीबू उत्पादक देशों की सूची में शुमार किये जाते हैं ,बावजूद आज हालात ये हैं की हम अपनी आबादी को निब्बू मुहैया नहीं करा पा रहे। निब्बू के दाम सरकार के लिए एक चुनौती बनते जा रहे हैं। नीबू, लगभग सभी प्रकार की भूमियों में सफलतापूर्वक उत्पादन देता है परन्तु जीवांश पदार्थ की अधिकता वाली, उत्तम जल निकास युक्त दोमट भूमि, आदर्श मानी जाती है। भूमि का पी-एच 6 -5 ,7 -0 होने से सर्वोत्तम वृद्धि और उपज मिलती है।
निब्बू के लोकतंत्र को महफूज रखने का एक ही तरीका है कि आप या तो निब्बू को कोल्डस्टोरेज माफिया से मुक्त कराये या फिर निब्बू को अपने घर के गमलों में इस तरह से उगाएं की आपको बाजार की शरण में जाना ही न पड़े । हमारे जमाने में तो निब्बू यत्र ,तत्र,स्र्त्र -सर्वत्र मिल जाता था लेकिन अब निब्बू चील का मूत्र हो चुका है चील का मूत्र मुमकिन है कि आपको मिल भी जाए लेकिन निब्बू आपको मिल ही नहीं सकता।

नीबू का लोकतंत्र बचाने का मन करे तो मै आपको बता दूँ की कागजी नीबू, प्रमालिनी, विक्रम, चक्रधर, और साईं शर्बती निब्बू की लोकप्रिय किस्में हैं । इनमें से कागजी नीबू सर्वाधिक महत्वपूर्ण किस्म है। इसकी व्यापक लोकप्रियता के कारण इसे खट्टा नीबू का पर्याय माना जाता है। प्रमालिनी किस्म गुच्छे में फलती है, जिसमें 3 से 7 तक फल होते हैं। यह कागजी नीबू की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक उपज देती है। इसके फल में 57 प्रतिशत (कागजी नीबू में 5 2 प्रतिशत) रस पाया जाता है। विक्रम नामक किस्म भी गुच्छों में फलन करती है। एक गुच्छे में 5 से -10 तक फल आते हैं। कभी-कभी मई-जून तथा दिसम्बर में बेमौसमी फल भी आते हैं। कागजी नीबू की अपेक्षा यह 35 प्रतिशत अधिक उत्पादन देती है। चक्रधर नामक किस्म खट्टा नीबू की बीज रहित किस्म है
बहरहाल भविष्य में निब्बू यदि आधारकार्ड दिखाने पर ही मिले तो आश्चर्य मत कीजिए । लोकतंत्र में कुछ भी हो सकता है । जब देश प्रगति करता है तो निब्बू को भी होड़ में शामिल होना पड़ता है
@ राकेश अचल

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