
सनातन धर्म में चैत्र अमावस्या तिथि का विशेष महत्व होता है। चैत्र अमावस्या को पितृदोष से मुक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। पंचांग के अनुसार चैत्र मास कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को चैत्र अमावस्या कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।इस दिन पितरों का तर्पण करने की भी परपंरा है।
इस वर्ष चैत्र अमावस्या दो दिन की पड़ रही है।
श्राद्ध आदि मध्याह्न काल में होता है अतः मध्याह्न व्यापिनी अमावस्या दिनांक – 31/03/2022 दिन – गुरुवार को दिन में – 10:15 मि. पर लग रही है। खास बात यह है कि चैत्र अमावस्या के दिन कई शुभ योग बन रहे हैं। इस दिन पहले शुक्ल योग फिर ब्रह्म योग का निर्माण हो रहा है।पूर्वाभाद्रपद के बाद उत्तराभाद्रपद नक्षत्र भी है।
उत्तराभाद्रपद दिन – 10:24 मि. से रेवती नक्षत्र एवं सर्वार्थ अमृत सिद्धि योग है तथा रेवती नक्षत्र में सूर्य की संक्रांति जनित पुण्य काल सहित अमावस्या तिथि की समाप्ति – 01/03/2022 दिन – शुक्रवार को दिन – 11:30 मि. पर है।
चैत्र अमावस्या को करने योग्य उपाय
चैत्र अमावस्या को काल सर्प दोष,पितृदोष एवं प्रेतत्व से मुक्ति पाने के लिए बहुत ही उत्तम माना जाता है। इस दिन काल सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए चांदी के नाग-नागिन की पूजा करने के बाद इन्हें नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। इसके साथ ही गायत्री मंत्र व महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है।
इस दिन पितृदोष से मुक्ति हेतु त्रिपिंडी श्राद्ध अति उत्तम होता है। और अपने पूर्वजों का पिंडदान एवं तर्पण भी करना चाहिए।
इस दिन प्रेत बाधा से ग्रसित लोगों को एवं जिसके कुल में कोई प्रेत योनि में पड़ा है उसके मुक्ति हेतु शिव जी के संमुख गंगा स्नान करने से प्रेतात्मा को मुक्ति मिलती है।
आचार्य धीरज द्विवेदी “याज्ञिक”
(ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र एवं वैदिक अनुष्ठानों के विशेषज्ञ)
प्रयागराज।
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