
बचपन से हम मॉनिटर बनना चाहते थे,एक-दो बार बने भी लेकिन कामयाब मॉनिटर साबित नहीं हुए .अपना-अपना नसीब है. क्लास में मॉनिटर उसी को बनाया जाता है जो सबसे ज्यादा होशियार हो,चपल हो,चंचल हो और दिखने में भी पप्पू जैसा हो .इन तमाम अहर्ताओं पर अपने राम कभी खरे नहीं उतरे .अगर उतरे होते तो आज आपके लिए रोजाना मगद के लड्डू न बना रहे होते .
बहरहाल बात मॉनिटरी की है. आजकल हमारे महाराज अपने शहर के लिए लगातार मॉनिटर की भूमिका में हैं. उन्हें किसी ने मॉनिटर चुना नहीं है,वे खुद मॉनिटर बन गए हैं. सियासी भाषा में इस तरह के मॉनिटर को स्वयंभू मॉनिटर कहा जाता है .मॉनिटर बनने के सभी लक्षण उनके पास जन्म से हैं,जन्म से क्या पीढ़ियों से और आज से नहीं सात पुश्तों से हैं .यानि आप कह सकते हैं कि हमारे महाराज का मॉनिटरी से जन्म-जन्म का नाता है ,ये बात और है कि जैसे हमारी गर्भनाल हमारे अपने शहर में नहीं है,वैसे ही उनकी भी नहीं है .
गर्भनाल का मॉनिटरी से कोई सीधा रिश्ता है भी नहीं .महाराज से पहले के महाराज की भी गर्भनाल कौन सी हमारे ऐतिहासिक शहर में थी ? लेकिन वे अपने शहर के लिए समर्पित थे हालाँकि वे मॉनिटरी ज्यादा पसंद नहीं करते थे .मैंने पहले ही कहा कि – पसंद अपनी-अपनी,ख्याल अपना-अपना होता है .हमारे शहर में दरअसल नेता बहुत हैं लेकिन मॉनीटरों का शुरू से घोर अभाव रहा है .जनता जिसे जनादेश देकर अपना नेता चुनती है उसका मॉनिटरी से कोई लगाव होता ही नहीं है ? मॉनिटर शब्द ‘मनी’ कुनबे का है .इसीलिए बहुत से जनप्रतिनिधि मॉनिटर बनने के बजाय ‘मनीटर’ यानि ‘मनी ईटर ‘ बन जाते हैं .हमारे एक नेता जी इसी शौक के चलते अपनी सांसदी गंवा चुके हैं .
बहरहाल बात मॉनिटरी की चल रही थी और हमारे महाराज आज के सबसे कामयाब मॉनिटर हैं. उनके पास हालाँकि इस बार मॉनिटरी का कोई साफ़-साफ जनादेश नहीं है लेकिन वे पिछले दरवाजे से ‘वाइल्ड कार्ड एन्ट्री’ के जरिये जनसेवा के लिए हाजिर हो गए .हालाँकि इस स्पेशल एन्ट्री कार्ड को हासिल करने के लिए उन्हें भारी कीमत अदा करना पड़ी .एक हंसती-खेलती सरकार को गिराना पड़ा .सरकार गिराना या खुद गिरना कोई आसान काम नहीं है .कितने लोग हैं जिनमें ये कूबत है कि वे किसी सरकार को गिरा दें या कोई गिरी हुई सरकार बनवा दें ? सरकार बनाना ,बिगाड़ना बच्चों का खेल नहीं हैं .
ओहो ,मै फिर भटक गया ! बात मॉनिटरी की चल रही है. मै बिना किसी अहर्ता के बीते दो साल से मॉनिटर कर रहा हूँ कि हमारे महाराज अपने शहर को नंबर एक बनाने के लिए हर योजना की हर महीने क्या,हर पखवाड़े मॉनिटरिंग करते हैं और ऐसी करते हैं कि पूरे प्रशासन को पसीना आ जाता है .अफसर उनके सामने पानी मांगने लगते हैं .हमारे शहर में पहले से सब कुछ होता आया है सिवाय मॉनिटरिंग के .शहर के पास अच्छा मॉनिटर न होने से हम विकास के मामले हमेशा पीछे ही रहे .हमें विकास का पिछलग्गू तक कहा जाने लगा जबकि एक जमाने में हम यानि हमारा शहर विकास के मामले में सबसे आगे रहा करता था .
लोग कहते हैं कि मॉनिटरी करना एक हुनर है.ये हुनर हर ऐसे-गैर में नहीं होता ,मॉनिटरी करना कोई हंसी-खेल नहीं है. मुन्ना हों या अन्ना,गन्ना कभी अच्छे मॉनिटर साबित नहीं हुए .इन तीनों को ‘मनी ईटर’ कहा जाता है .सियासत में ‘मनी ईटर’ होना कोई बुरी बात नहीं मानी जाती .सियासत में तो जो ‘मनी’ खाना नहीं जानता उसे संत समाज में दाखिल करा दिया जाता है ‘मनी ईटर’ होना आपके हाथ में हैं ,लेकिन ‘मॉनिटरी’ का हुनर ऊपर वाला देता है .’मॉनिटर’ उसी को बनाया जाता है जिसे ‘मनी’ की ज्यादा चाह नहीं होती .हमारे महाराज पर ‘मनी’ की क्या कमी ? उन्हें खुद नहीं पता कि उनके खजाने में कुल कितना ‘मनी’ है ? उन्होंने तो आज तक कोई ‘मनीआर्डर’ किया नहीं .ऊपर वाले ने उन्हें विरासत में ही इतना ‘मनी’ दे दिया है कि उनके पुरखे ‘मनीराम’ कहे जा सकते हैं ,हालांकि उन्हें मोती वाला कहा जाता था .
एक अच्छा मॉनिटर विकास का मुरीद होता ही है. उनके पास विकास के फाइव स्टार आइडियाज होते हैं .इसलिए किसी शहर के पास अच्छा मॉनिटर होना खुशनसीबी मानी जाती है .बिना मॉनिटर के कोई भी क्लास आपने ढंग से चलती देखि है ?मैंने तो नहीं देखी.मॉनिटरी का हासिल क्या है ,ये हम नहीं जानते ,हमें सिर्फ इतना पता है कि बेहतर मॉनिटरिंग हो तो जनता को राहत मिलती है .राहत आसमान से नहीं टपकती .उसे हासिल करने के लिए काम करना और करना पड़ता है .हमारा मॉनिटर इन दिनों जबर्दस्त काम कर रहा है .काम के सिवा कुछ नहीं कर रहा .हमारे मॉनिटर का काम आप सड़क से लेकर संसद तक में देख सकते हैं
मॉनिटर का एक रिश्तेदार शब्द है मॉनिटाइजेशन .ये हमारे यहां पहले ही हो चुका है .देश में बहुत कम जनसेवक आये हैं जिन्होंने ने मॉनिटाइजेशन कर काला और सफेद अलग-अलग करने की कोशिश की हो .ये बात अलग है कि इस कोशिश में ‘काला मनी’ काला ही रहा और सफेद ,सफेद .सफेद को देख ‘काला’ बाहर नहीं आया .आया भी तो चोर दरवाजों से सफेद होकर बाहर आया .मॉनिटाइजेशन करने वाला सुपर मॉनिटर कहा जाता है .सुपर मॉनिटरी का ही सुफल है कि देश में दलदल लगातार बढ़ रहा है और कमल कृषि का तेजी से विस्तार हो रहा है .हमारे किसान खुश हैं .
कहते हैं कि अच्छा मॉनिटर छछिया भर छाछ पर नाच नचाना जानता है .आजकल हमारे सूबे की सरकार हमारे मॉनिटर के इशारे पर नाच रही है .सरकार को नाच नचाना भी कोई आसान काम नहीं है.हमारा मॉनिटर आसान काम हाथ में लेता ही नहीं है वरना कौन है जो ऐसे मंत्रालय का मालिक बनने को तैयार हो जाएगा जिसमें उड़ने और उड़ाने के सिवाय कुछ बचा ही नहीं है .जानकार कहते हैं कि मंत्रालय में मॉनिटरिंग के लिए ज्यादा कुछ नहीं है इसलिए महाराज अपने शहर में मॉनिटरिंग पर ध्यान दे रहे हैं,ताकि वक्त आने पर शहर उनके ऊपर ध्यान दे ,वरना ये शहर तो कबका उनके ऊपर ध्यान देना बंद कर चुका था .अपात्र होते हुए भी हम जैसे लोग भी कभी-कभी अपने इर्दगिर्द मॉनिटरिंग कर लेते हैं क्योंकि हमें मनी ईटिंग नहीं आता .
@ राकेश अचल