
मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान के दो साल निर्विघ्न पूरे होने का मौक़ा शिवराज सिंह चौहान की स्तुति गान की होड़ का मौक़ा भी है .हमारी बिरादरी का एक बड़ा हिस्सा इस मौके पर अपने पूरे कौशल से लगा हुआ है .हम भी इस मौके को हाथ से नहीं जाना चाहते और प्रदेश में अवतरित हो रही ‘ बुलडोजर संस्कृति ‘ पर विमर्श करना चाहते हैं .
शिवराज सिंह पहली बार किस्मत से दूसरी और तीसरी बार अपने पुरूषार्थ से और चौथी बार अनुकम्पा से मुख्यमंत्री बने हैं .हर बार उन्होंने कुछ न कुछ नया किया है .वे प्रदेश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो राज्य की जनता के रिश्तेदार भी हैं. शिवराज सिंह चौहान जगत मामा हैं.यानि उन्होंने प्रदेश में मामा बनकर लड़के-लड़कियों के लिए इतना कुछ किया है कि उनका नाम ही मामा मुख्यमंत्री पड़ गया है बुंदेली में कहूँ तो -‘वे मामा नाम से बजने लगे हैं’ .[बजने का आशय यहां ख्याति से है] .लेकिन हकीकत ये है कि वे अब जनता को मामा बना रहे हैं .ये उनकी विवशता है पुरूषार्थ नहीं .
अपने चौथे कार्यकाल में वे भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के लिए अनुकरणीय नहीं रह गए हैं ,उलटे वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का अनुसरण कर रहे हैं .वे योगी की तरह अपने आपको भी ‘बुलडोजर मुख्यमंत्री ‘ के रूप में स्थापित करने के लिए लालायित हैं .हाल ही में उनकी सरकार ने बलात्कार के आरोपियों के मकानों पर बुलडोजर चला कर दिखाया है ,हालाँकि इसके लिए उनसे ऐसा करने के लिए न जनता ने कहा था और न किसी अदालत ने .किसी आरोपी की सम्पत्ति को उसकी फरारी की स्थिति में कुर्क करने का प्रावधान तो क़ानून में है किन्तु आरोपी की गिरफ्तारी के बाद भी उसकी सम्पति को जमींदोज करने का प्रावधान कम से कम मैंने तो नहीं पढ़ा या देखा .
प्रदेश में क़ानून और व्यवस्था को मजबूत करने के लिए उत्तर प्रदेश की तर्ज पर बुलडोजर का इस्तेमाल शिवराज सिंह सरकार की मजबूरी क्यों बन रही है ,इसकी पड़ताल की जाना चाहिए. प्रदेश के गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्र सरकार की कार्रवाई को सही ठहराते हुए कहते हैं कि अपराधियों के मन में भय पैदा करने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल करना गलत नहीं है .गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं की रवि,पावक और सुरसरि जैसे समर्थों के लिए कोई दोष होता ही नहीं है.वे जो चाहें सो कर सकते हैं. सरकार का नाम भी समर्थों की इस सूची में अब जोड़ा जाना चाहिए ,क्योंकि सरकार समर्थ होती है वो क़ानून का राज कायम करने के लिए क़ानून से इतर कुछ भी कर सकती है .
प्रदेश में कानून और व्यवस्था सुधारने के लिए दो शहरों में पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू की गयी है. किसी ने सवाल नहीं किया कि इस प्रणाली से क्या सचमुच क़ानून और व्यवस्था की स्थिति सुधर गयी है ?यदि सुधर गयी है तो कोई महिला नेत्री शराब की किसी लाइसेंसशुदा दूकान में जाकर कैसे पथराव कर आती है और उसके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं होता .यदि पुलिस आयुक्त प्रणाली कामयाब है तो कैसे इंदौर में सत्तारूढ़ दल के एक विधायक के खिलाफ मारपीट के एक मामले में पुलिस ढंग से पैरवी नहीं कर पाती और विधायक जी निर्दोष साबित करार दे दिए जाते हैं ?
प्रदेश के मामा मुख्यमत्री शिवराज सिंह की हैसियत इस समय स्वर्गीय मोतीलाला वोरा के कार्यकाल जैसी है. वोरा जी भी अनुकम्पा मुख्यमंत्री थे,उनके ऊपर भी सिंधिया परिवार की अनुकम्पा थी .अनुकम्पा पर पदारूढ़ हुआ कोई भी मुख्यमंत्री असली पुरषार्थी नहीं बन पाता ,उसे मजबूरन बुलडोजरों का सहारा लेना ही पड़ता है .शिवराज सिंह चौहान का स्तुतिगान करने वालों की मान्यता है कि साल 2005 में पहली बार सीएम बने शिवराज ने एक राजनीतिज्ञ और प्रशासक के रूप में लंबा सफर तय किया है। बदलते वक्त के साथ उनकी राजनीति का अंदाज बदलता गया, लेकिन उन्होंने अपना मूलमंत्र नहीं बदला।
शिवराज सिंह के प्रशंसक मानते हैं कि वे संघ के मूलमंत्र ‘ मुंह में शक्कर, पांव में चक्कर और सिर पर बर्फ रखकर’ काम करने वाले मुख्यमंत्री है .इसमें हकीकत भी है. वे लगातार दौरे पर रहने वाले मुख्यमंत्री है ,वे केवल चुनाव के समय कड़वा बोलते हैं ,शेष समय उनके मुंह से शहद ही टपकता है ,वे बड़ा से बड़ा अपमान खामोशी से सहन कर लेते हैं .वे जिस महारज को गद्दार बताते नहीं थकते थे आज उन्ही महाराज को वे मुजरा करते नहीं थकते .जाहिर है कि शिवराज राजनीति की नब्ज को औरों के मुकाबले ज्यादा बेहतर तरीके से समझते हैं और शायद इसीलिए जनता के साथ ही वे पार्टी है कमान की भी पसंद बने हुए हैं .
एक मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह पर खुद तो सत्ता की चर्बी चढ़ती नजर नहीं आती किन्तु उनके आसपास के लोग इस अवधारणा को झुठलाते दिखाई देते हैं .स्तुतिगान करने वाले कहते हैं कि वे आपदा को अवसर में बदलने की कला में भी माहिर हैं। मंदसौर गोलीकांड के बाद किसान बीजेपी से बुरी तरह खफा थे और कांग्रेस इसे चुनावों में इस्तेमाल करने की रणनीति बना रही थी। शिवराज ने मौका देखकर प्याज खरीदी और भावांतर-भुगतान जैसी योजनाओं से उनके खातों में पैसा पहुंचाना शुरू किया और कांग्रेस के हाथों से यह मुद्दा छीन लिया था .
शिवराज के प्रशंसकों को लगता है कि वे आम लोगों के साथ पार्टी के अंदर और बाहर लोगों को साधने की कला में भी माहिर हैं। वे विरोधियों से बदला लेने में भरोसा नहीं रखते। मौका मिलते ही उन्हें उनकी गलती बताकर अपना मुरीद बना लेते हैं। अपनी मर्जी किसी पर थोपते नजर नहीं आते, लेकिन ऐसा माहौल तैयार कर देते हैं कि सामने वाला उनकी बात खुद ही मान लेता है।जबकि हकीकत इसके विपरीत गवाही देती है. शिवराज सिंह के विरोधी आज पंख कटे परिंदों की तरह फड़फड़ाते नजर आ रहे हैं .फिर चाहे वे उमा भारती हों,या कैलाश विजयवर्गीय ,या गोपाल भार्गव .ये सूची बहुत लम्बी है .उनके विरोधी अब भाजपा के नए क्षत्रप ज्योतिरादित्य सिंधिया के पीछे जा खड़े हुए हैं .
बहरहाल मुझे एक मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज अपनी सादगी की वजह से प्रिय लगते हैं .उन्हें आप जैसा चाहे नाच नचा सकते हैं .वे घर और बाहर दोनों जगह सहज हैं.वे गा सकते हैं ,वे नाच सकते हैं,वे प्रवचन कर सकते हैं .यानि राजनीति में जितने ठठकर्म जरूरी है ,वे सब शिवराज सिंह चौहान के लिए बाएं हाथ का काम हैं .शिवराज सिंह भविष्य में भी शिवराज सिंह चौहान बने रहें बुलडोजर सिंह चौहान न बनें ,यही कामना है ,शुभकामना है कि वे और नए कीर्तिमान स्थापित करें .
@ राकेश अचल