@विनोद भगत
(25 फरवरी, 2022)
उत्तराखंड में जहां एक ओर मतदान प्रतिशत के हिसाब से कांग्रेस का दावा है कि उनकी सरकार आ रही है, तो भाजपाई दावा कर रहे हैं कि एक बार कांग्रेस-एक बार भाजपा का मिथक टूटेगा और उनकी सरकार बनेगी। कई नेताओं के मुताबिक जब मतदाताओं को सरकार बदलनी होती है, तो वे बढ़-चढ़कर मतदान करते हैं, जबकि यदि वे सरकार से संतुष्ट होते हैं तो अपेक्षाकृत सामान्य मतदान होता है़।
इधर, उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए चार चरणों का मतदान संपन्न हो चुका है। हर चरण में इस बार पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले कम मतदान का ट्रेंड दिखाई पड़ रहा है। कम मतदान का यह ट्रेंड केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है। पंजाब में भारी सियासत के बाद भी इस बार पिछले तीन विधानसभा चुनाव के मुकाबले कम मतदान हुआ है।
उत्तराखंड में भी पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में अपेक्षाकृत कुछ कम मतदान हुआ है। यह ट्रेंड क्या कहता है और इसका किसे फायदा और किसे नुकसान हो सकता है? फिलहाल दावों का दौर जारी है और दोनों बड़े दल अपनी सरकार बनने के प्रति आश्वस्त नजर आ रहे हैं।
कम मतदान का यह ट्रेंड केवल उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं है। पंजाब जैसे अन्य राज्यों में भी इसी तरह का ट्रेंड देखने को मिल रहा है जो चिंताजनक है। पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 में करीब 72 फीसदी मतदान हुआ है। यह पिछले तीन विधानसभा चुनाव में सबसे कम है। 2017 में पंजाब में 77.40 फीसदी, 2007 में 75.45 और 2012 में 78.20 फीसदी रहा था।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 में भी 2017 के चुनाव के मुकाबले कम वोटिंग हुई है। इस बार यहां 65.37 फीसदी मतदान हुआ है जो पिछली बार की तुलना में 0.19 फीसदी कम है। 2017 में उत्तराखंड में 65.36 फीसदी, 2012 में 66.17 फीसदी और 2007 में 59.45 फीसदी मतदान हुआ था।
सभी राजनीतिक दल इस वोटिंग ट्रेंड को अपने अनुसार बता रहे हैं। इस कम मतदान के ट्रेंड के बीच भी एक बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि पश्चिमी यूपी के उन इलाकों में जहां मुस्लिम और यादव मतदाता बहुतायत संख्या में रहते हैं, वहां मतदान ज्यादा हुआ है। इसका साफ अर्थ है कि ये मतदाता सरकार बदलने के लिए अपनी ताकत का भरपूर उपयोग कर रहे हैं। वहीं भाजपा का मतदाता बाहर नहीं निकल रहा है। वह किसी कारण से दूसरे दलों को वोट नहीं देना चाहता, लेकिन वह भाजपा की नीतियों के कारण निरुत्साहित है और इसलिए मतदान के लिए बाहर नहीं आ रहा है।