
अच्छा है कि मेरे शहर में किसी के पास पदम् पुरस्कार नहीं है .कभी-कभी मुझे लगता था कि ये सम्मान मुझे भी मिलना चाहिए लेकिन अब लगता है कि मै गलत कामना करता था.दरअसल अब भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले सम्मान व्यक्ति का अपमान करने के लिए दिए जाने लगे हैं .भला हो सुश्री संध्या मुखोपाध्याय का कि उन्होंने अपमान के लिए दिए जाने वाले पदम् सम्मान को ठुकरा दिया .हालांकि पद्म सम्मान ठुकराने वाली वे पहली कलाकार नहीं है ,उनसे पहले भी ऐसा दुस्साहस अनेक महान लोग कर चुके हैं .
संध्या जी 90 साल की है और बंगाल की ही नहीं देश की सुविख्यात पार्श्व गायिका हैं .सरकार को उनकी सुध अब आयी ,जब वे कामना रहित हो चुकी हैं .सवाल ये है कि सरकार का सम्मान देने का पैमाना क्या है ? क्या हर कोई इस सम्मान के लिए सचमुच आवेदन करता है या फिर सरकार लाटरी सिस्टम से ये सम्मान बांटती है. यानी ये सम्मान पूंछ उठाकर होने वाली जांच के बाद देने का निर्णय किया जाता है ?
इस साल सरकार ने पिछले महीने एक दुर्घटना में मारे गए देश के पहले सीडीएस विपिन रावत और उत्तर प्रदेश के पूर्व ही नहीं बल्कि अभूतपूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को पद्मभूषण सम्मान दे डाला .सवाल ये है कि ये दोनों महापुरुष अचानक इतने सम्माननीय कैसे हो गए ? क्या दुर्घटना में जान देना महान बना देती है या देश की सबसे बड़ी अदालत की अवमानना करना महानता का परिचायक है .इन दोनों की सरकार को आखिर इनके जीते जी सम्मानित करने की सुध क्यों नहीं आयी. भाजपा की सरकार तो देश में बीते सात साल से है .
सरकार ने इस बार कांग्रेस के एक शीर्ष नेता गुलाम नबी आजाद को भी पद्मभूषण बना दिया .आखिर भाई साहब ने पिछले कुछ सालों में ऐसा क्या कर दिया कि वे मौजूदा सरकार की नजरों में अचानक सम्माननीय बन गए ? आजाद साहब कांग्रेस के गुलाम थे,हैं और कांग्रेस की जड़ों में मठ्ठा डालने के अलावा उन्होंने कोई महान काम नहीं किया है ,फिर भी वे पदम् सम्मान पा रहे हैं ,और जो सचमुच के हकदार हैं उन्हें 90 साल बाद पदम् सम्मानों की सबसे पहली श्रेणी के लिए चुना जाता है .
संध्या जी की बेटी सोमी सेनगुप्ता ने कहा, ’90 साल की उम्र में, लगभग आठ दशकों से ज्यादा के सिंगिंग करियर के साथ पद्म श्री के लिए चुना जाना उनके लिए अपमानजनक है।’यूं भी ‘पद्म श्री किसी जूनियर कलाकार के लिए अधिक योग्य है, न कि ‘गीताश्री’ संध्या मुखोपाध्याय के लिए। उनका परिवार और उनके गीतों के सभी प्रेमी भी यही महसूस करते हैं।’ आपको बता दें की संध्या जी एस डी बर्मन, अनिल विश्वास, मदन मोहन, रोशन और सलिल चौधरी सहित कई हिंदी फिल्म संगीत निर्देशकों के लिए भी गाना गा चुकी हैं। उन्हें ‘बंग बिभूषण’ समेत कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
इस देश में सम्मानों के लिए भाटगीरी करने वाले लोग हैं तो सम्मानों को ठुकराने वाले भी कम नहीं हैं. बंगाल की ही पूर्व मुख्य्मंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य पदम् पुरस्कार को ठुकरा चुके हैं .मुझे याद आता है कि ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बहन गीता मेहता ने 2019 में पद्म श्री सम्मान लेने से इनकार कर दिया था। उन्हें सरकार ने शिक्षा और साहित्य में योगदान के लिए सम्मानित करने का फैसला लिया था। लेकिन गीता मेहता ने पुरस्कार की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए इसे लेने से इनकार कर दिया था। उनका कहना था कि आम चुनाव से पहले यह सम्मान दिया जा रहा है। उनका मानना था कि केंद्र सरकार की ओर से यह पुरस्कार उन्हें इसलिए देने का फैसला लिया गया ताकि पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल में सेंध लगाई जा सके।
आज की सरकार ने कल्याण सिंह और पूर्व सीडीएस रावत को भी इसी राजनीतिक नजरिये से पद्मविभूषण सम्मान दे दिए क्योंकि उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश में विधानसभा कि चुनावों में इसका लाभ लिया जा सकता है ,हमारी बिरादरी कि ही वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र कपूर ने 2016 में पद्म सम्मान लेने से इनकार कर दिया था।वे आपातकाल कि दौरान जेल में थे .सरकार को लगा कि वे कांग्रेस विरोधी हैं ,लेकिन कपूर ने साफ़ कर दिया था कि मैं किसी सरकार के खिलाफ नहीं हूं। लेकिन अपने 40 साल के करियर में मैंने सरकार से कुछ भी हासिल नहीं किया है। मैं सरकार से कुछ भी हासिल करने में यकीन नहीं रखता। तमिल लेखक एवं निर्देशक बी. जयमोहन ने भी 2016 में ही पद्म श्री सम्मान लेने से इनकार कर दिया था।उनका कहना था कि वह यह सम्मान लेकर समाज में खुद को हिंदुत्व के समर्थक के तौर पर नहीं पेश करना चाहते हैं।
पदम् सम्मानों को लेकर ऐसा नहीं की भाजपा की सरकार कि समय ही विवाद खड़े हुए हैं,इससे पहले भी कांग्रेस सरकार कि जमाने में ऐसी घटनाएं हुई हैं .गायिका सिस्तला जानकी ने 2013 में मिले पद्मभूषण सम्मान को लेने से इनकार कर दिया था। उनका मानना था कि सरकार की ओर से उनकी प्रतिभा को सम्मान देने में देरी हुई है। यही नहीं उनके परिवार के लोगों का कहना था कि वह जिस कद की गायिका हैं, उसका सम्मान उन्हें भारत रत्न देकर ही किया जा सकता है। तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम और हिंदी में 20,हजार से ज्यादा गीत गाने वालीं जानकी का कहना था कि दिग्गजों की बजाय जूनियर कलाकारों को सम्मानित किया जा रहा है, जो अपमानजनक है।
मेरी निजी धारणा है की कोई भी पुरस्कार मृत्योपरांत तो बिलकुल नहीं दिया जाना चाहिए .हर पुरस्कार कि लिए एक आयुवर्ग होना जरूरी है. आप एक ही पुरस्कार 30 साल कि युवा को और वो ही 90 साल कि बुजुर्ग को कैसे दे सकते हैं ?एक ही जैसी उपलब्धियों कि लिए दो अलग-अलग लोगों को अलग-अलग श्रेणी कि पुरस्कार देने कि पीछे आखिर राजनीति नहीं तो और क्या है ?पदम् पुरस्कारों को राजनीतिक लाभ-हानि कि नजरिये से दिया जाना तो और घृणित है. राजनीतिक रिश्तों और विचारधाराओं को भी इन सम्मानों का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए ,जो दुर्भाग्य से हर सरकार करती आयी है .बावजूद इसके जिन महानुभावों को वर्ष 2022 कि पदम् पुरस्कारों से नवाजा गया है उन सभी को बहुत-बहुत बधाई .उम्मीद की जाना चाहिए की भविष्य में इन पुरस्कारों की सुचिता का ध्यान रखा जाएगा और चयन की प्रक्रिया भी बदली जाएगी .किसी भी सम्मान कि लिए आवेदन मांगना तो सचमुच लज्जास्पद है .आखिर सब तो सुंदरलाल बहुगुणा हो नहीं सकते ,जो बिना पदम् सम्मान कि भी परम् सम्मानित समाजसेवक बने रहे.
@ राकेश अचल