भाजपा भले ही राजनीति में परिवारवाद के नाम पर गांधी परिवार को जब तब गरियाती रहती हो, लेकिन भाजपा के नेता अपनी पत्नियों, बच्चों और यहां तक कि अपने रिश्तेदारों को टिकट दिलवाने से परहेज नहीं करते।
@शब्द दूत ब्यूरो (12 नवंबर, 2021)
मतदाता चाहे या न चाहे, उत्तराखंड की राजनीति में भी वंशवाद का झंडा बुलंद करते हुए, भाजपा-कांग्रेस के कई दिग्गज नेता आगामी विधानसभा चुनाव-2022 में अपने परिजनों को टिकट दिलाने की जुगत में लगे हैं। इनमें से कुछ जहां खुद की जगह बेटे-बेटी को टिकट देने की पैरवी कर रहे हैं वहीं, कुछ खुद सदन में मौजूद रहते हुए अपनों को भी सत्ता के गलियारों से परिचित कराने की तैयारी में हैं।
भाजपा भले ही राजनीति में परिवारवाद के नाम पर गांधी परिवार को जब तब गरियाती रहती हो, लेकिन भाजपा के नेता अपनी पत्नियों, बच्चों और यहां तक कि अपने रिश्तेदारों को टिकट दिलवाने से परहेज नहीं करते। फिलहाल आने वाले विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड में भी परिवारवाद के नाम पर अपनों को टिकट दिलवाने का संग्राम दिखाई देगा।
उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लगने में दो माह से कम ही समय शेष है। ऐसे में तमाम पार्टियों में टिकट के दावेदार सामने आने लगे हैं। इसमें कुछ ऐसे भी हैं जो अपनी पारिवारिक विरासत पर हक जता रहे हैं। कुछ मामलों में बुजुर्ग हो चुके नेता स्वेच्छा से रिटायरमेंट की मांग करते हुए, ‘जनसेवा’ की जिम्मेदारी अपने परिजनों को देना चाहते हैं। इससे क्षेत्र में पहले से सक्रिय दूसरे कार्यकर्ताओं में असंतोष पनप रहा है।
वैसे प्रदेश की राजनीति में पारिवारिक कोटा कई तरह से चलन में है। विधानसभा चुनाव में टिकट दिलाने के साथ ही किसी भी विधायक के निधन से रिक्त हुई सीट पर उपचुनाव में भी दिवंगत नेता के परिजनों को ही प्राथमिकता दी जाती है। मौजूदा विधानसभा में ही मुन्नी देवी, चंद्रा पंत व महेश जीना, इसी तरह निर्वाचित होकर सदन में पहुंचे हैं।
पिछली विधानसभा में ममता राकेश भी अपने पति की सीट पर निर्वाचित होकर सदन तक पहुंची थीं, हालांकि लगातार दूसरा चुनाव जीतकर ममता ने अपनी सियासी क्षमताओं का परिचय भी दिया। 2017 के विधानसभा चुनाव में तीन दिग्गज अपनी सियासी विरासत, अगली पीढ़ी को सौंपने में कामयाब हुए थे। इसमें पूर्व सीएम बीसी खंडूड़ी ने अपनी बेटी ऋतु को यमकेश्वर व पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने अपने बेटे सौरभ को सितारगंज से विधानसभा पहुंचाया।
पूर्व मंत्री यशपाल आर्य भी अपने बेटे संजीव को भाजपा के टिकट पर विधायक बनाकर, सियासी मैदान में लांच कर चुके हैं। यह दोनों अब कांग्रेस के चिह्न पर मैदान में होंगे। वैसे प्रदेश की सियासत में विरासत की जड़ें पुरानी हैं। नेता विपक्ष प्रीतम सिंह के पिता गुलाब सिंह यूपी के समय से चकराता के विधायक रहे। वहीं, लैंसडौन विधायक दिलीप रावत के पिता भारत सिंह रावत भी यहीं से चार बार विधायक रहे थे।