
देश के विभिन्न राज्यों में लोकसभा की 3 और विधानसभा की 29 सीटों के लिए हुए उपचुनावों में सत्तारूढ़ दलों के लिए परिणाम लगभ्ग आपेक्षित ही आये किन्तु हिमाचाल प्रदेश के चुनाव परिणामों ने सभी को चौंकाया .हालांकि हिमाचल के उपचुनाव परिणाम देश की नब्ज का अनुमान नहीं देते .देश की जनता इन उप चुनावों के जरिये मंहगाई और दुसरे मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया देने में असमंजस का शिकार हुयी .
मध्यप्रदेश,असम,बिहार ,महाराष्ट्र,समेत तमाम राज्यों में जो जहाँ सत्ता में था उसे अपेक्षित कामयाबी मिली .बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने चारों सीटें जीती हैं, मध्य प्रदेश में दो सीटों पर भाजपा और एक पर कांग्रेस जीती है। हिमाचल में तीनों विस सीट और एक लोकसभा सीट भी कांग्रेस जीती है। राजस्थान की भी दो विस सीटों के परिणाम कांग्रेस के पक्ष में गए हैं। बिहार में दोनों सीटें जदयू ने जीती हैं। हरियाणा की एक मात्र सीट पर हुए विस चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल के अभय सिंह चौटाला ने बाजी मारी है।
उपचुनाव में ऊँट की नहीं बल्कि ऊदबिलाव की मुद्रा देखी जाती है .अक्सर मतदाता सत्तारूढ़ दल के साथ जाता है,क्योंकि जानता है कि उपचुनावों के जरिये किसी भी राज्य में कोई स्थिति बदली नहीं जा सकती ,हाँ इसके जरिये सत्तारूढ़ दल को चेताया या धमकाया जा सकता है
.हिमाचल में कुछ-कुछ ऐसा ही हुआ.हिमाचल में सत्तारूढ़ दल को अपेक्षित परिणाम नहीं मिले. हिमाचल में अस्ताचल की और जा रही कांग्रेस को अपेक्षा से अधिक कामयाबी मिली .जाहिर है कि हिमाचल के मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल को धमकाने के लिए कांग्रेस को विजयी बनाया .हिमाचल में सत्तारूढ़ दल उप चुनाव के परिणामों से सबक ले सकता है .
बिहार ,राजस्थान और मध्यप्रदेश में सत्तारूढ़ दलों की पकड़ मतदाताओं पर बनी रही .कमोवेश हरियाणा में भी यही हुआ .मिजोरम,मेघालय,कर्नाटक,महाराष्ट्र और तेलंगाना में उप चुनावों के परिणामों ने किसी को चौंकाया नहीं .जो नतीजे आये उनके बारे में सभी को अंदाजा था .यानि इन उप चुनावमें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की छवि न बनी और न बिगड़ी ,अलवत्ता समबन्धित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की डांवांडोल कुर्सियां स्थायित्व को प्राप्त हुईं .हिमाचल में सत्तारूढ़ भाजपा को अब जरूर उत्तराखंड ,गुजरात की तरह नेतृत्व परिवर्तन के बारे में सोचना पड़ सकता है .
उप चुनावों के नतीजों से विपक्ष को निराशा हो सकती है क्योंकि इन उप चुनावों के जरिये विपक्ष ने देश में सत्तारूढ़ दल के खिलाफ जनता कि नाराजगी को अभिव्यति देने में कामयाबी हासिल नहीं की .न बिहार में,न मध्यप्रदेश में और न असम में .लेकिन दूसरे शब्दों में आप कह सकते हैं कि ये उपचुनाव परिणाम घालमेल का संकेत देते हैं .इन परिणामों से ये कतई जाहिर नहीं होता कि केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की लोकप्रियता बरकरार है .ये उप चुनाव परिणाम न प्र्धानमंत्री की लोकप्रियता का पैमाना बन सके और न राजनीतिक दलों की लोकप्रियता के .इन उपचुनावों में स्थानीय परिस्थितियां ही निर्णायक साबित हुईं .
हाल ही में दलबदल के दंश का शिकार मध्य्प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष शर्मा की पीठ थपथपाई जा सकती है .क्योंकि इन दोनों की प्रतिष्ठा बनी रही. प्रदेश में भाजपा को सत्तारूढ़ करने में अहम भूमिका निभाने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की स्टार प्रचारक की भूमिका पर भी कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लग पाया .जबकि लग रहा था कि नतीजे चौंकाएंगे. नतीजों ने चौंकाया किन्तु सत्तारूढ़ दल को नहीं बल्कि कांग्रेस को .अब मध्यप्रदेश के बारे में कांग्रेस हाईकमान को ठीक उसी तरह सोचना पडेगा जैसे के हिमाचल प्रदेश के बारे में भाजपा हाईकमान को .
उपचुनावों का चरित्र सभी जानते हैं,किसी भी राज्य में कोई भी उपचुनाव हो उसमें सत्तारूढ़ दल सत्त्ता का दुरूपयोग करता ही है और उसे इसका लाभ भी मिलता है ,बावजूद इसके सभी जगह सत्ता का दुरूपयोग काम नहीं आता जैसे कि हिमाचल में नहीं आया .यानि अपवाद स्वरूप जनता जब गुस्से में होती है तब अपने फैसले प्रलोभनों के बाद भी नहीं बदलती .उपचुनावों में भावुकताएँ भी काम करतीं हैं ,लेकिन हर बार नहीं,जैसे कि मध्यप्रदेश की पृथ्वीपुर विधानसभा सीट पर हुआ. यहाँ पूर्व मंत्री के बेटे को भावुकता का लाभ नहीं मिला किन्तु हिमाचल में कांग्रेस प्रत्याशी को इसका लाभ मिला .यानि उपचुनावों के नतीजे सत्तारूढ़ दल के प्रबंधन के अलावा अनेक दूसरे कारकों सी प्रभावित होते हैं .
आंकड़े बताते हैं कि जिन 29 विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव हुए हैं उनमें से भाजपा ने पहले करीब आधा दर्जन सीटों पर जीत हासिल की थी। इन 29 सीटों में से कांग्रेस के पास 9 विधानसभा सीट थी, जबकि बाकी सीटें क्षेत्रीय पार्टियों के पास थी।यानि उप चुनावों के बाद भाजपा की स्थिति कोई बहुत मजबूत नहीं हुई है .जनता के मूड का पता लगाना अब बहुत आसान काम नहीं रह गया है .हजार रूपये का रसोई गैस सिलेंडर और 120 रूपये लीटर का पेट्रोल खरीदने को विवश जनता अपनी प्रतिक्रिया कैसे और कब देगी राम ही जाने !
उपचुनावों में में बात सिर्फ सीटों की नहीं है। किसने कितनी सीटें जीतीं, इससे ज्यादा मायने इस बात के हैं कि किसने कौन सी सीट जीती। बिहार में लालू यादव को उम्मीद थी कि वो अगर बाई इलेक्शन में दोनों सीटें जीत गए तो राज्य में सरकार बदल सकते हैं। ममता बनर्जी ने सारी सीटें बहुत बड़े मार्जिन से जीतीं हैं। इनमें वो सीटें भी शामिल हैं, जो छह महीने पहले बीजेपी ने जीती थीं।मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने वो सीट जीत ली, जहां बीजेपी को जीतने की कभी कोई उम्मीद नहीं होती थी। हिमांचल में बीजेपी की बुरी हार हुई लेकिन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि हार मंहगाई की वजह से हुई है। शिवसेना ने पहली बार महाराष्ट्र के बाहर लोकसभा की कोई एक सीट जीती है।
असम में नए मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने सारी सीटें जीत लीं। ये साबित कर दिया कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने कोई गलती नहीं की लेकिन कर्नाटक में जिन बसवराज बोम्मई को बीजेपी ने थोड़े दिन पहले चीफ मिनिस्टर बनाया था, वो अपने ही इलाके में विधानसभा की एक सीट हार गए।उपचुनावों के परिणामों से बेफिक्र हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी तो आजकल ग्लास्गो में दुनिया को नए मन्त्र देने में लगे हैं .उन्होंने पहले दुनिया के लिए एक विश्व ,एक स्वास्थ्य नीति का मन्त्र दिया था,अब ग्लास्गो में वे ‘ एक सूरज ,एकदुनिया और एक ग्रिड ‘ का मन्त्र दे रहे हैं .
@ राकेश अचल।