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हिन्दू धर्म को ठेके पर किसने उठाया? मध्य प्रदेश की घटना से उपजे सवालों पर वरिष्ठ पत्रकार राकेश अचल का चिंतन

राकेश अचल, लेखक देश के जाने-माने पत्रकार और चिंतक हैं, कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में इनके आलेख प्रकाशित होते हैं।

भोपाल में फिल्म निर्माता और अभिनेता प्रकाश झा के मुंह पर स्याही फेंकने और उनकी पूरी टीम पर प्राण घातक हमला किये जाने की वारदात ने भोपाल की साझा संस्कृति पर भी स्याही पोत दी है. इस वारदात के बाद सबसे बड़ा सवाल ये पैदा हो रहा है कि हिन्दू धर्म को कब और किसने बजरंग दल को ठेके पर दे दिया है ? क्योंकि किसी को पता नहीं है कि हिन्दू धर्म के ठेके की विज्ञप्तियां कब जारी हुईं और कितने संगठनों ने इस प्रक्रिया में हिस्सा लिया .

भोपाल की वारदात के बाद मध्यप्रदेश के गृह मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्र के बयान से इस बात की पुष्टि हो गयी है कि प्रदेश में धर्म की रक्षा पुलिस और क़ानून नहीं बल्कि हुड़दंग दल करेगा .डॉ मिश्रा ने कहा है कि अब प्रदेश में किसी भी फिल्म की शूटिंग की इजाजत तभी दी जाएगी जब उसकी कहानी पढ़ ली जाएगी .गृह मंत्री तो गृह मंत्री मप्र पुलिस के अदने से इंस्पेक्टर तक स्क्रिप्ट पढ़ने की बात कर रहे हैं.आया कि देश में सेंसर बोर्ड की कोई अहमियत नहीं है. किसी प्रदेश के गृह मंत्री और वहां की पुलिस सेंसर बोर्ड के ऊपर है .

मध्यप्रदेश की सभी सरकारें अरसे से फिल्म उद्योग को आकर्षित करने के लिए पापड़ बेल रहीं हैं. भाजपा की मामा सरकार ने इस दिशा में उल्लेखनीय काम किया था.कांग्रेस की कमलनाथ सरकार भी इंदौर में आईफा का आयोजन कर इस दिशा में आगे बढ़ना चाहती थी किन्तु शायद ऐसा कर पाना कमलनाथ सरकार के नसीब में नहीं था .फिल्म सिटी बनाने के सरकारी संकल्पों को लेकर ढोल,मजीरे पीटने वाली सरकार अब प्रदेश में शूटिंग की इजाजत देने के लिए तालिबानी रवैया अपनाने पर मजबूर है.सरकार को मजबूर कर रहे हैं हुड़दंग दल जैसे अतिवादी संगठन ,जिनकी उम्र जुम्मा-जुम्मा अभी 37 साल की है .

हिन्दू संस्कृति की सेवा और सुरक्षा के लिए डॉ परवीन तोगड़िया द्वारा रोपे गए इस पौधे में से अब कुछ और ही प्रस्फुटित हो रहा है .ये संगठन सेवा और सुरक्षा के बजाय धर्म का अघोषित ठेकेदार बन गया है. भाजपा की सरकारों ने भी चुपचाप हुड़दंग दल की इस भूमिका को स्वीकार कर लिया है. हिन्दू धर्म किसी एक संगठन या समूह की सम्पदा नहीं है ,इसलिए इसकी सुरक्षा के नाम पर हुड़दंग मचाने वालों को समूचा हिन्दू समाज कैसे अंगीकार कर सकता है .हिन्दू धर्म के चारों शंकराचार्य आजकल शायद मख्खियां मार रहे हैं.उन्हें हिन्दू धर्म की जैसे कोई फ़िक्र नहीं रही है. लगता है कि तमाम शंकराचार्यों और आचार्यों ने भी बजरंगदल के सामने घुटने तक दिए हैं .

हुड़दंग दल भाजपा और भाजपा की सरकार की मजबूरी हो सकती है लेकिन भाजपा सरकार को सोचना होगा कि देश और प्रदेश में जनादेश से चुनी गयी सरकारें केवल हिन्दुओं की नहीं है. केंद्र और राज्य की सरकार सभी धर्मों के लोगों ने मिलकर बनाई है .कोई सरकार किसी एक दल को किसी एक धर्म को ठेके पर फिर कैसे उठा सकता है ? हुड़दंग दल को प्रकाश झा की फिल्म पर कोई आपत्ति है तो वो थाने जाये,पुलिस में रपट लिखाये,वहां भी बात न बने तो अदालत जाये ,वहां भी सुनवाई न हो तो धरना,प्रदर्शन करे लेकिन हमले करने की छूट और अधिकार न उसे किसी ने दिया है और न उसके पास ऐसा कोई संवैधानिक अधिकार है .विरोध के नाम पर हमला केवल और केवल अपराध है .और इसके खिलाफ यदि हमले से आतंकित पक्ष थाने में रपट लिखाने न भी जाये तो पुलिस को अपनी और से संज्ञान लेना चाहिए ‘

मध्यप्रदेश की सरकार और पुलिस अपने संवैधानिक दायित्वों को या तो भूल गयी है या जानबूझकर भूलने का अभिनय कर रही है .कला ,संस्कृति ,सिनेमा का ठेका सरकार के पास नहीं समाज के पास है .और समाज केवल हुड़दंग दल नहीं है. उसके अलावा भी बहुत कुछ है समाज में .देश कि आजादी के 75 साल में ये सब ठेकेदारी पहली बार देखने को मिल रही है.यही हुड़दंड दल ‘वेलेंटाइन डे ‘ पर अपनी आचार संहिता लागू करने के लिए गुंडागर्दी करता है और पुलिस हाथ बांधे खड़ी रहती है .प्रेम कौन,कैसे और कहाँ करे ?ये अतिवादी संगठन तय करते हैं .इन्हें आखिर ये अधिकार किसने दिया है ?एक ख़ास रंग का दुपट्टा न हिन्दुओं के लिए हुड़दंग का लायसेंस हो सकता है और न मुसलमानों के लिए .

कुछ वर्ष पहले इसी तरह एक जातिवादी संगठन ने एक सिनेमा को लेकर पूरे देश में तलवारें तान लेने की मुहिम चलाई थी .आज उस संगठन का कहीं आता-पता नहीं है .उक्त संगठन के साथ सेना शब्द जुड़ा था .इस देश में एक सरकारी सेना के होते हुए इस तरह की बरसाती मेंढकों जैसे सेनाएं अतीत में भी बनती,बिगड़ती रहीं हैं. बिहार तो इस तरह की सेनाओं का गढ़ था .चंबल वाले सेना के बजाय गिरोह बनाते थे लेकिन किसी ने भी धर्म का ठेकेदार बनने की कोशिश कभी नहीं की थी.

सबका साथ,सबका विकास की दुहाई देने वाली केंद्र सरकार को इस मामले में दखल देना चाहिए,हालांकि हम जानते हैं कि ऐसा होगा नहीं .यदि निर्वाचित और संविधान की शपथ लेकर बनी सरकारें वारदातों का परोक्ष समर्थन करेंगी तो काबुल और भोपाल की सरकार में कोई ज्यादा भेद रह नहीं जाएगा .चुनी हुई सरकारें यदि इरादतन देश,प्रदेश को फांसीवाद की आग में झोकना चाहती हैं तो फिर कुछ कहने की जरूरत नहीं है .सरकारें इस बात के लिए समर्थ है कि धर्म को किसी को भी ठेके पर उठा दें और धर्म की कथित रूप से रक्षा करने वालों के आपराधिक क्रियाकलापों को उचित मानकर उन्हें संरक्षण प्रदान करें .
बीते सात साल में मीडिया सत्ता का अनुचर बनाया जा चुका है ,अब संस्कृति,साहित्य ,सिनेमा और कलाएं ही बची हैं ,इन्हें भी निशाने पर ले लिये गया है .अब ये आपके ऊपर है कि आप अपने धर्म को मुठ्ठी भर लोगों के हाथ में कैद देखना चाहते हैं या उसे खुली हवा में सांस लेते देखना चाहते हैं .खतरा आपकी संस्कृति को कम धर्म को ज्यादा है .कल को धर्म के ठेकेदार सड़क पर आपस में सिरों को गेंद बनाकर चौगान खेलते नजर आने लगें तो हैरान मत होइए .ऐसा तालिबानी रवैया तो आपातकाल में भी नहीं अपनाया गया. उन दिनों भी ‘ किस्सा कुर्सी का ‘ बनी थी.उसे प्रतिबंधित किया गया लेकिन फिल्म बनाने वालों के न तो चेहरों पर स्याही मली गयी थी और न उन्हें सड़क पर पीटा गया था .लेकिन अब तो इंतिहा हो चली है अभी तो केवल आगाज हुआ है ,अंजाम आने में अभी समय है .
@ राकेश अचल

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