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बड़ी खबर :देश में ऊर्जा संकट का गंभीर खतरा, आधे से ज्यादा राज्य डूब सकते हैं अंधेरे में, पावर प्लांटों में कोयले की स्टाक हो रहा समाप्त, पढ़िये पूरी रिपोर्ट

135 थर्मल पावर में से 72 के पास कोयला तीन दिन से भी कम का है। 50 पावर प्लांट ऐसे भी है जहां 4 से 10 दिन का कोयला स्टॉक में है। देखना ये है कि अब सरकार इससे कैसे निपटती है लेकिन आने वाले त्योहारों में यदि बिजली संकट पैदा हो गया तो परेशानी आम लोगों की होगी।

@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो (10 अक्टूबर 2021)

कोरोना महामारी के बाद अब देश की अर्थव्यवस्था पर ऊर्जा संकट का खतरा उत्पन्न हो गया है। देश के 135 पावर प्लांट में से आधे से ज्यादा में कोयले का स्टॉक लगभग समाप्ति पर है। यदि जल्द ही सरकार की ओर से कोई उपाय नहीं किया गया तो तो देश को बिजली की कमी से जूझना पड़ेगा और अर्थव्यवस्था पटरी से उतर जायेगी।

दरअसल देश के 70 प्रतिशत पावर प्लांट कोयले पर आधारित हैं। और देश के पावर प्लांट में कोयले की कमी अवश्यभावी है। यदि कोयले की कमी पूरी नहीं की जायेगी देश का अधिकांश हिस्सा अंधेरे में डूब जायेगा।

कोयले के भंडार में कमी के चार कारण

  1. कोरोना की दूसरी लहर के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार होने की वजह से बिजली की मांग बढ़ी है।
  2. सितंबर 2021 के महीने के दौरान कोयला खदान क्षेत्रों में भारी वर्षा, जिससे कोयला उत्पादन के साथ-साथ खदानों से कोयले की डिलिवरी भी प्रभावित हुई।
  3. आयातित कोयले की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि के कारण आयातित कोयला आधारित बिजली संयंत्रों से बिजली उत्पादन में भारी कमी आई है, जिससे घरेलू कोयले पर अधिक निर्भरता बढ़ गई है। इससे कोयले की किल्लत भी हुई है। 
  4. इसके बाद मानसून की शुरुआत से पहले पर्याप्त कोयले के भंडार का निर्माण न होने से कोयला खदानों पर प्रभाव पड़ा है। 

इस बीच कोयला भंडारण और उसके वितरण के प्रबंधन के लिए विद्युत मंत्रालय और केंद्र सरकार द्वारा एक कोर मैनेजमेंट टीम (सीएमटी) बनाई गई है। विद्युत मंत्रालय द्वारा आधिकारिक विज्ञप्ति में बताया गया है कि प्रबंधन टीम का गठन पहले 27 अगस्त को किया गया था, जिसमें एमओपी, सीईए, पोसोको और रेलवे और कोल इंडिया लिमिटेड सहित विभिन्न मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल हैं। टीम को दैनिक आधार पर कोयला स्टॉक की निगरानी और प्रबंधन और मंत्रालयों के साथ आगे की कार्रवाई का काम सौंपा गया है। इससे पहले शनिवार को किए गए कार्यों की स्थिति को समझने के लिए समीक्षा बैठक की गई। 

यह स्थिति आखिर कैसे उत्पन्न हुई? यह बड़ा सवाल है। जब दुनिया भर में कोरोना अपने चरम पर था तो भारत समेत अधिकांश देशों की औद्योगिक गतिविधियों पर ब्रेक लग गया था। जैसे जैसे कोरोना का कहर कम हुआ औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आ गयी। परिणामस्वरूप बिजली की मांग काफी बढ़ गई। एक अनुमान के मुताबिक 2019 की अपेक्षा बिजली की मांग 18 फीसदी बढ़ रही है।

कोयले की कीमतों में भी लगभग 40 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। भारत में कोयले का आयात कम हो गया इसके पीछे कोयले की बढ़ती कीमतें बताई जा रही है। देश के पावर प्लांट की जरूरत के मुताबिक भारत कोयले का पर्याप्त आयात नहीं कर पाया। देश में कोयले का भंडार कम होता रहा। एक कारण मानसूनी बारिश को भी बताया गया है कि मानसूनी बारिश के चलते कोयला खदानों में खनन कर पाने में दिक्कत आई। कोल इंडिया को कई सरकारी पावर उत्पादक इकाईयों ने भुगतान भी नहीं किया। उधर बारिश के कारण ट्रांसपोर्टेशन में भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।

उधर सूत्रों की मानें तो भारत का 20 लाख टन कोयला चीन के पोर्ट में फंसा हुआ है। हालांकि भारत अपनी कोयले की जरूरत का अधिकांश हिस्सा आस्ट्रेलिया से मंगाता है। फिलहाल कुछ कोयला वहाँ से मंगवाया लेकिन वह मौजूदा मांग के हिसाब से नाकाफी है। यहाँ खास बात यह है कि भारत में दुनियाभर में कोयले का चौथा सबसे बड़ा भंडार है। इसके बाद भी देश कोयला संकट के मुहाने पर क्यों है?दरअसल, देश में खपत के चलते कोयले की अधिक जरूरत होती है। भारत दुनिया में कोयला आयात के मामले में दूसरे नंबर पर है।

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