@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो (20 जुलाई, 2021)
दो महिला पत्रकारों ने राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है और कहा है कि औपनिवेशिक समय के दंडात्मक प्रावधान का इस्तेमाल पत्रकारों को डराने, चुप कराने और दंडित करने के लिए किया जा रहा है।
‘द शिलॉन्ग टाइम्स’ की संपादक पेट्रीसिया मुखिम और ‘कश्मीर टाइम्स’ की मालिक अनुराधा भसीन ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए (राजद्रोह) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार को ‘‘परेशान करने के साथ ही बाधित करना” जारी रखेगी।
अर्जी में कहा गया है, ‘‘राजद्रोह के अपराध की सजा के लिए उम्रकैद से लेकर साधारण जुर्माने तक की जो तीन श्रेणियां बनायी गई है वह न्यायाधीशों को निर्बाधित विशेषाधिकार प्रदान करने के समान है क्योंकि इस सजा के लिए कोई दिशानिर्देश नहीं है। इसलिए यह संविधान में प्रदत समता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं और मनमाना है।”
पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि राजद्रोह राजनीतिक अपराध था, जिसे मूलत: ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान राजनीतिक विद्रोह को कुचलने के लिए लागू किया गया था। पीयूसीएल ने कहा कि इस तरह के ‘‘दमनकारी” प्रवृत्ति वाले कानून का स्वतंत्र भारत में कोई स्थान नहीं है।
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