@नई दिल्ली शब्द दूत ब्यूरो
कोरोना के कारण महाराष्ट्र में पिछले दो सालों से कुश्ती की प्रतियोगिता बंद है जिसका असर पहलवानों पर पड़ा है। पहले की तरह ना ही वो प्रैक्टिस कर पा रहे हैं, और न ही कुश्ती के बारे में सोच पा रहे हैं। स्टेट और नेशनल लेवल पर खेल चुके खिलाड़ी अब 300 रुपये के दिहाड़ी पर खेती करने को मजबूर हैं।
भारतीय कुश्ती महासंघ और खेलो इंडिया जैसे प्रतियोगिताओं में कांस्य पदक जीतने वालीं संजना बागड़ी यूं तो पहलवान हैं और कुश्ती खेलती हैं. लेकिन पिछले दो सालों से महाराष्ट्र में होने वाली सभी कुश्ती के प्रतियोगिताएं बंद हैं, जिसकी वजह से अब संजना घर चलाने के लिए 300 रुपये दिहाड़ी पर खेती करने को मजबूर हैं। एक पहलवान को तंदुरुस्त रखने के लिए भी खास खानपान का ध्यान रखना पड़ता है लेकिन वो भी कर पाना अब मुश्किल है।
संजना का परिवार सांगली जिले के मेराज तालुके के तुंग गांव से आता है। पिता मछुआरे हैं लेकिन फिलहाल बाज़ार बंद है और पैसे खत्म हो रहे हैं। पश्चिमी महाराष्ट्र में बड़े पैमाने पर कुश्ती खेली जाती है, लेकिन अब सब कुछ बंद है। परिवार वाले बताते हैं कि संजना की तरह कई खिलाड़ी हैं जो इस तरह काम करने को मजबूर हैं।
संजना की दादी कस्तूरी बागड़ी कहती हैं, ‘इसने बड़े मन लगाकर पूरी ताकत से कुश्ती में मेहनत की और हम भी चाहते थे कि उसे इसमें ही सफलता मिले। और अब जब यह खेतों में काम करती है तो बहुत बुरा लगता है।’