@शब्द दूत ब्यूरो
नई दिल्ली। शहरी विकास मंत्रालय के एक नोटिस ने केंद्रीय सुरक्षा बलों के अधिकारियों व जवानों को परेशानी में डाल दिया है।
एक तरफ तो देश कोविड-19 महामारी से जूझ रहा है तो दूसरी ओर केंद्रीय सुरक्षा बलों के अधिकारी और जवान अपना सरकारी आवास बचाने के लिए के लिए अदालत की शरण में चले गए हैं। देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ व बीएसएफ के कई जवान ऐसे इलाकों में अपनी ड्यूटी पर हैं जो नक्सल प्रभावित, जम्मू-कश्मीर या पूर्वोत्तर के खतरनाक क्षेत्रों में आते हैं। गौरतलब है कि इनके परिवार दिल्ली में अलॉट सरकारी मकानों में रह रहे हैं। शहरी विकास मंत्रालय की ओर से इनको यह मकान एलॉट किये गये हैं। लेकिन अब उसी शहरी विकास मंत्रालय ने इन जवानों और अधिकारियों को मकान खाली कराने के नोटिस थमा दिये हैं।
शहरी विकास मंत्रालय के इस नोटिस के बाद इन सुरक्षा बलों के कर्मचारियों ने दिल्ली हाईकोर्ट की शरण ली है। जहाँ न्यायालय ने सुनवाई की अगली तारीख 11 अगस्त तय की है।
जो नोटिस इन जवानों को दिया गया है उसमें साफ कहा गया कि यदि मकान खाली नहीं किये तो उन्हें हर माह 32 हजार रुपये जमा कराने होंगे। देश की रक्षा में तैनात सुरक्षा बलों के जवानों की गुहार सरकार ने नहीं सुनी तो मजबूर होकर उन्हें अदालत की शरण लेनी पड़ी।
बता दें कि जवानों के परिवार को तीन साल के लिए सरकारी आवास मिलता है। जवानों के सामने बड़ी समस्या यह है कि कई जवान ऐसी जगह तैनात हैं जहाँ हर वक्त खतरा बना रहता है। ऐसे में परिवार को साथ रखकर वह अपने परिवार को भी खतरे में नहीं डाल सकते।
बीएसएफ डीजी ने इस समस्या पर गृह सचिव को लिखा था कि वे इस मामले में केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय से बात करें। डीजी ने तो इतना भी कहा कि तीन साल वाली शर्त हटा दी जाए। हालांकि अब इन जवानों को 31 अगस्त तक का समय दिया गया है।
बहरहाल अब मामला अदालत में चला गया है। देखना होगा कि जवानों को परेशानी में डालने वाले शहरी विकास मंत्रालय के इस नोटिस पर क्या निर्णय होता है। 


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