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कोरोना संकट के दौरान इस देश के प्रधानमंत्री लगभग 16 लाख करोड़ रुपए का आर्थिक सहयोग लोगों को सीधे खाते में रिलीज कर चुके हैं

 

लेखक पंकज चतुर्वेदी (देश के जाने-माने पत्रकार और चिंतक हैं)

हम सबके प्रिय हैं विवेक उमराव सामाजिक यायावर ।ऑस्ट्रेलिया के निवासी हैं ।।उनकी पत्नी यानि मेरी बहू वहां पर भारतीय प्रशासनिक सेवा जैसे है उसी स्तर की वरिष्ठ अधिकारी हैं। विवेक ने अभी साझा किया कि किस तरीके से ऑस्ट्रेलिया में कोरोना से ग्रस्त समाज को वहां की सरकार ने सीधे 1600000 करोड रुपए का फायदा दिया है। यह पूरी प्रक्रिया देखिए और फिर तो तुलना कीजिए कि हम कहां पर खड़े हैं।हमारा पैकेज केवल उद्योग पतियों के लिए है।

ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या के आधे से अधिक लोगों के खातों में लगभग डेढ़ लाख रुपए हर महीना सरकार की ओर से पहुंच रहा है। जिन लोगों की नौकरियां चली गईं हैं, जिन लोगों के व्यापार डूब गए हैं, जिन लोगों ने नए व्यापार शुरू किए थे, बुजर्ग लोगों को, युवा छात्रों इत्यादि-इत्यादि को हर महीने डेढ़ लाख रुपए उनके खातों में सीधा पहुंच रहा है।

इन लोगों के लिए बिजली, पानी, गैस इत्यादि बिलों में भी सरकार छूट दे रही है। यदि मकान-मालिक किराया में कमी कर रहे हैं तो जितनी कमी कर रहे हैं, उसके आधार पर उनको सरकारी टैक्सों पर भारी छूट की योजना लागू कर दी गई है। किराया न दे पाने के कारण किराएदार को निकाला नहीं जा सकता है, न ही ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है।

इतनी छूटों के अतिरिक्त डेढ़ लाख रुपया महीना, मतलब व्यक्ति के पास इतना पैसा है कि वह अपना व अपने परिवार का पालन पोषण सहूलियत व सम्मान से कर सकता है।

डेढ़ लाख रुपए महीना का मतलब मोटा-मोटी यह समझिए कि विकासशिल देशों से जो लोग इंजीनियरिंग बीटेक/एमटेक इत्यादि करके यहां नौकरी करने आते हैं। उनमें से अधिकतर लोगों को शुरुआत में जितना वेतन मिलता है, यह राशि उसका लगभग आधा है।

मतलब यह कि सरकार का प्रयास यही है कि देश के लोगों के जीवन स्तर में बहुत अधिक कमी न आए।ऑस्ट्रेलिया प्रधानमंत्री सरकार ने छोटे, मंझोले व बड़े सभी स्तर के व्यापारियों व कंपनियों मतलब जो लोग भी नौकरियां देते हैं, उनसे कहा कि आप लोगों को नौकरियों से निकालो नहीं बल्कि लोगों को नौकरी पर बनाए रखो।

सरकार प्रति कर्मचारी की दर से डेढ़ लाख रुपए महीना आपको देगी, जो आप अपने कर्मचारी को वेतन के तौर पर देंगे ताकि जब हमारा देश कोरोना से बाहर आएगा तब लोगों के पास नौकरियां होंगी और आपके पास काम करने के लिए कर्मचारी होंगे।

ऑस्ट्रेलिया प्रधानमंत्री जानते हैं कि लोगों के पास नौकरी हो या न हो। लोगों के व्यापार घाटे में हों या मुनाफे में। लोग भोजन तो करेंगे ही, जीवन की जरूरतों के लिए खर्च तो करेंगे ही। यदि लोगों के पास नौकरियां नहीं होंगी, लोगों के व्यापार बंद रहेंगे तो जीवन की जरूरतों के लिए लोगों के पास पैसा कहां से आएगा।

इसलिए ऑस्ट्रेलिया प्रधानमंत्री ने देश का खजाना देश के लोगों के लिए यह कहते हुए खोल दिया कि सब-कुछ देश के लोगों का ही बनाया है, यदि ऐसी आपदाओं में भी देश का संसाधन देश के लोगों के सीधे काम नहीं आएगा तो देश होने का मतलब ही नहीं रह जाता है।

ऑस्ट्रेलिया प्रधानमंत्री ने देश के कारपोरेट कंपनियों की बजाय पहली प्राथमिकता के साथ चिंता की देश के आम लोगों की। क्योंकि आम आदमी ही किसी देश की असली रीढ़ होता है, आम आदमी से ही देश बनता है। आम लोगों की नौकरियां जा रहीं हैं, छोटे व मझोले व्यापारियों के व्यापार कोरोना से प्रभावित हो रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया प्रधानमंत्री समझते हैं, कि देश की इकोनोमी बनती है आम लोगों के जीवन व इकोनोमी से।

कोरोना के कारण लोगों की नौकरियां जा रहीं थीं, व्यापारिक कामकाज प्रभावित हो रहे थे। कोरोना के फैलाव को रोकने के लिए कई स्तरों के प्रतिबंध लगने के बाद लोगों के जीवन में पड़ने वाले प्रभावों इत्यादि सभी संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री ने लोगों के जीवन व हितों को सर्वोपरि प्राथमिकता देते हुए निर्णय लिए।

लोगों को आर्थिक सहयोग समय से पहुंचे, लोगों को तकलीफ न हो, उनकी समस्याओं का निराकरण अतिशीघ्र हो। इसलिए प्रधानमंत्री ने समाज कल्याण विभाग में हजारों नौकरियों की वैकेंसी निकाल दी। ताकि देश के हर व्यक्ति की देखभाल समय रहते हो सके। किसी को सहयोग पहुंचने में देरी न हो, क्योंकि देरी होने का मतलब, लोगों का जीवन संकट में पड़ना, लोगों का भयंकर मनोवैज्ञानिक परेशानी में पहुंचना। प्रधानमंत्री ने ऑस्ट्रेलिया की सर्वोच्च सरकारी सेवा (जैसे भारत में IAS) के लोगों से आवाहन किया कि वे लोग भी सामाजिक कल्याण विभाग में अपनी सेवाएं दें।

यदि भारत के प्रशासनिक स्तर से तुलना की जाए तो उप-जिलाधिकारी, जिलाधिकारी, कमिश्नर इत्यादि स्तर के ऑस्ट्रेलिया पब्लिक सर्विस के अधिकारी लोग हजारों की संख्या में साधारण क्लर्क की तरह सामाजिक कल्याण विभाग में लोगों को अपनी सेवाएं बिना अतिरिक्त वेतन व सुविधा के दे रहे हैं।

यह लगभग 16 लाख करोड़ रुपए का आम लोगों को आर्थिक सहयोग कोरोना के कारण लोगों के स्वास्थ्य व सुरक्षा से संबंधित आपातकाल के लिए सरकारी तैयारियों तथा देश के लोगों की कोरोना-टेस्टिंग इत्यादि में होने वाले अनाप-शनाप खर्चों से अलग है। जरूरत पड़ी तो सरकार और सहयोग करेगी।

यह 16 लाख करोड़ रुपए देश की सरकार की ओर से देश के आम लोगों के लिए बिना लाग-लपेट सीधा व प्रत्यक्ष सहयोग है। व्यवस्था तंत्र में इतनी ईमानदारी व पारदर्शिता है कि बिना एक पैसा भी कम हुए, सारा का सारा पैसा लोगों तक पहुंचता है।

दरअसल ऐसी ऐतिहासिक-अपवाद आपदाओं में लोगों को सीधा सहयोग चाहिए होता है। दीर्घकालिक योजनाओं का कोई मतलब नहीं होता। यदि लोगों के पास रोजमर्रा की जरूरतों व भोजन के लिए संसाधन नहीं हों तो ऐसी योजनाओं का कोई औचित्य ही नहीं होता जिनका लाभ भविष्य में मिलना होता है या मिलने की संभावना होती है।

 

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